मिथ्या स्वप्न से वास्तविक जाग।
कल रात की नींद में मैं एक स्वप्न जी रहा था। दफ़्तर की एक महफ़िल में लतीफ़ा सुनाते हुए मुझे किसी आड़ से एक कुलीग दिखाई दी। उन्हें देखते ही बोध हुआ कि लतीफ़े की प्रकृति इस अवसर के अनुकूल नहीं है। उनको अपनी तरफ देखते हुए देखकर कंपकपी हुई। ये झुरझुरी हवा की ठण्ड के कारण थी। मैं छत पर चारपाई पर बिना कुछ ओढ़े सो गया था। हवा की ठंडक ने मेरा स्वप्न तोड़ दिया। मैं कमरे में गया। तकिया और चादर लेकर फिर से लेट गया।
स्वप्न में अनुचित होने का बोध ये संकेत करता है कि वह एक मिथ्या स्थिति नहीं है। स्वप्न हमारी जागृत अवस्था की तरह सीखे गए अनुचित को अपने साथ लिए हुए था। अवचेतन या अर्धचेतन स्थिति में वह कौन है जो सावचेत करता है। डराता है। रोकता है। अगर वह स्वप्न भर है। मन का उलझ हुआ विकार या प्रकृति भर है तो वहां इन सब की उपस्थिति क्यों है?
यही सोचते हुए मुझे नींद आ गयी कि सम्भव है स्वप्न एक वास्तविक जीवन है। उसका टूटना ही असल स्वप्न में लौट आना है। जो मिथ्या है वह सत्य है। जो कल्पना है वह सोच के भीतर और दृश्य से दूर एक और सत्य है। संभव है स्वप्न सत्य और जीवन मृत्यु की एक अवस्था भर है।
उसे देखकर मैं सम्मोहन में चला गया था। वह शायद मेरी कोई परिचित रही है ऐसा आंशिक बोध था लेकिन उसका रूप अनेक रूपों से बना हुआ था। वह ऍन ब्रोंट जैसी दिख रही थी। उसे स्वप्न में देखा था। मैंने लगातार स्वप्न याद रखने की कोशिशें की और उनको लिखा।
मेरी एक कहानी है 'धूप के आईने में' इसी शीर्षक से कहानी संग्रह भी है। इस कहानी में मेरे देखे हुए स्वप्न हैं। कहानी की रचना प्रक्रिया के बारे में अगर पाठकों को ये बताया होता कि ये सब लेखक के देखे हुए असल स्वप्न है तो उसके पठन में एक खास आसानी घुल जाती। यही सोचकर मैंने किसी को कुछ न बताया। इसके बारे में सिर्फ वे दोस्त जान सकते हैं जो मेरी डायरी हथकढ़ पढ़ते हैं।
एक बार क़ैदखाने में मैं उस लड़की से मिला। उसने मुझे बताया कि यहाँ से किस आसानी से बाहर निकला जा सकता है। मैंने वही किया। फिर पाया कि मैं एक जेल में नहीं घर में क़ैद था। इस स्वप्न के बाद मेरी किताबों की चर्चा होने लगी। अप्रत्याशित रूप से कहानियां पढ़ी गयी। तो मेरा मन एक कैदखाना था। मैं वहां से बाहर आया। भीतर जो था उसे स्वतन्त्र कर दिया। और वो जो लड़की मुझे क़ैदखाने में मिली थी वह सिलीगुड़ी जैसे शहर मैं रहने से घबराती थी।
क्या स्वप्न हमारे हाथ लगा जीवन का एक अनिश्चित टुकड़ा भर नहीं है? या वह ही हमारा मार्गदर्शक है और हमने उसे मुलाकात का वक़्त बेमन से दिया है। जब भी इस जीवन से अपॉइंटमेंट मिले उससे खूब गहराई से मिलिए।
धूप का आईना दूर तक फैला हुआ था। पीले रंग के फूल ही फूल खिले थे। बाद मुद्दत के मिले लड़के को लड़की ने अपने पैराहन में छुपा लिया। लड़के ने कहा तुम रो रही हो? उसने कहा- नहीं। मगर वह रो रही थी।
[Painting Image; Barbra]