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कहाँ है तुम्हारी प्रेमिका

लिखना सबसे चिपकू व्यसन है. एक अक्षर मांडो तो पीछे एक कतार चली आती है. एक बार शुरू होने के बाद दिन-रात उसी में रम आते हैं. इसलिए अक्सर शब्दों को छिटक कर रेगिस्तान पर तने आसमान को चुप निहारने लगता हूँ. छत से रेलवे ओवर ब्रिज दीखता है उस पर गुजरते हुए दुपहिया-चौपहिया वाहन मेरी गुमशुदगी पर दस्तक की छेड़ करते हैं. मैं पल भर को आकाश के विस्तृत वितान के सम्मोहन से बाहर आता हूँ और फिर उसी में लौट जाता हूँ.

लिखना बस इतना था कि मुझे नीला रंग प्रिय है.
***


आँख भर नीला रंग। 
तुम्हारे कन्धों पर ठहरा हुआ।
***

वो जो हम समझे थे 
असल में बात उतनी ही नहीं थी।
***

छत, खिड़कियां, दीवार, 
अलगनी और नीम अँधेरा 
जैसे सब आ बैठें हों किसी ख़ामोशी की क्लास में।
***

अल्पविरामों से भरी एक ठहरी हुई ज़िन्दगी। 
मगर गुज़रती हुई।
***

याद भीगी छत से टपकता है एक ख़याल। 
ज़िन्दगी एक करवट चुप देखती है।

शायद देखती है।
***

जितने रंग थे, उन रंगों से अनेक रंग खिलते गए. जितनी आवाजें थी, उन आवाज़ों में अनेक आवाजें झरती रहीं. जितने मौसम थे, उन मौसमों में अनेक मौसम साथ चलते रहे.

हमने ज्यादातर को न देखा, न सुना और न महसूस किया.
***

सिगार बुझ गया है सिरे तक आने से पहले
इस बात पर जाने क्यों मोहब्बत का ख़याल आया।
***

एक मकड़े ने दुछत्ती से
हवा में लगाया गहरा गोता
और वापस लौट गया।

शैतान को
उसकी अंगुलियां छूने की याद आई
और आकर खो गयी।
***

जा चुकी है भीगी रात
उम्र के लिबास से झड़ रहे हैं
बरस आहिस्ता-आहिस्ता।
शैतान तुम कहाँ हो, कहाँ है तुम्हारी प्रेमिका।
***

बालकनी को चूमती
पंजों के बल खड़ी है गंधहीन पुष्ष-लता।

उनींदी, रात की याद से भरी।
***

ताज़ा खिली घास की ओट से
नन्हे बैंगनी फूल मुस्कुराते हैं।

खुले मैदान के वितान पर बादलों ने लिखी है ज़िन्दगी।
***

कुछ चीज़ें जब आपका रास्ता रोक लेती हैं तब उनका इशारा होता है कि सुकून से बैठकर अपने अतीत को याद करो।
***

तलब क्या लिखी और सामां क्या लिखा है। 
अपनी इस लिखावट पर ज़रा झाँक तो डालो ज़िन्दगी।
***
[Watercolor painting; Artist unknown ]

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