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तलवे चाटते लोगों की स्मृति में

एक पत्थर की मूरत थी, उस पर पानी गिरता था. एक सूखा दरख्त था उसे सुबह की ओस चूमती थी. एक कंटीली बाड़ थी मगर नमी से भीगी हुई. असल में हम जिसे सजीव देह समझते हैं, वे सब मायावी है. वे छल हैं. वे जागते धोखे हैं. वे असल की शक्ल में भ्रम हैं. उनके फरेब प्रेम की शक्ल हैं मगर असल में पत्थर और पानी के मेल जैसे सम्मोहक किन्तु अनछुए हैं. वे साथ हैं मगर दूर हैं. 

अचानक याद आया कि बीते दिनों मैं ज़िन्दा था. अचानक याद आया कि कोई जैनी थे, तो अचानक याद आया कि बौद्ध भी तो थे. उन्हीं बौद्धों के महामना बुद्ध की बातों की स्मृति से भरी कुछ बेवजह की बातें. 

महाभिनिष्क्रमण
साधारण मनुष्यों के लिए नहीं है।

वृद्ध, रोगी, मृतक और परिव्राजक को
देखना और समझना
छः वर्षों की कठिन तपस्या के बाद
मार-विजय प्राप्त कर
अज्ञान के अंधकार से बाहर चल देना।

ये केवल बुद्ध का काम हो सकता है।

बाकी दलाल मन उम्र भर दलाली ही कर सकता है।
उसकी आत्मा को इसी कार्य में सुख है। यही उसकी गति है, यही उसका निर्वाण।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 1]
* * *

विचित्र संयोग ही था कि
बुद्ध का जन्म, बोधि-प्राप्ति और निर्वाण
ये तीनों घटनाएं
एक ही दिन वैशाख पूर्णिमा को हुई।

कुछ लोगों पर मगर
उम्रभर ऐसा अंधकार छाया रहा
कि वे जिनसे मिलना तक गवारा नहीं करते थे
उनके तलवे चाटते रहे।

सब पूर्णिमाएं व्यर्थ गईँ।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 2]
* * *

बुद्ध उपदेशों के संकलन
विनयपिटक और सुत्तपिटक
थेरवादियों की कल्पनों से भरे पड़े हैं।

सत्य अलोप होने को शापित है।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 3]
* * *

सुख की खोज के सूत्रों को
लिपिबद्ध करने को आयोजित
चार प्रमुख बौद्ध संगीति
दुखों के आडम्बरों में डूबकर विदा हुई।

मूल को निष्काषित कर कल्पना अधिकार कर लेती है।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 4]
* * *

सत्य एक शाखीय है,
असत्य की अनेक शाखाएं होती हैं।

बुद्धत्व
हीनयान और महायान में विभक्त हुआ
इसके बाद थेरवाद, सर्वास्तिवाद
और सौन्त्रान्तिक शाखाएं उगी।

अफ़सोस कि बुद्धत्व शायद
हो गया होगा विदा, बुद्ध के ही साथ।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 5]
* * *

चुप्पी चोरों का सहारा
विद्वानों का आभूषण
धूर्तों का हथियार है।

बुद्धत्व का इन तीनों से कोई लेना-देना नहीं है।

[सम्यक सम्बुद्ध - मतिहीन प्रबुद्ध - 6]
* * *

चार आर्यसत्यों में
पहला कहता है संसार दुःखमय है।

कभी प्रिय किसी का अस्त्र बन जाता है
कभी प्रिय आपको अस्त्र बना देता है।

दुःख या तो पहलू में बैठे हैं या फिर दिल में।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 7]
* * *

अकारण कुछ नहीं होता
कार्य-कारण की श्रृंखला लंबी है।

वह आया तो कोई कारण था
उसके जाने का भी कारण होगा
इस द्वादशाङ्ग से बाहर आओ।

दुःख पर मिट्टी डालो।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 8]
* * *

ये सम्भावना कम
और वास्तविकता अधिक है
कि आत्मपीड़ा में आसक्ति दुःखमय है।

भिक्षु, प्रव्रज्या के लिए इस अंत का सेवन न करो।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 9]
* * *

जिनका त्याग करना था
वे भौतिक चीज़ें नहीं थीं।

मगर आडम्बर बिना
धर्म और प्रेम दोनों कठिन होते हैं।

[सम्यक सम्बुद्ध : मतिहीन प्रबुद्ध - 10]
* * *

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