Skip to main content

Posts

Showing posts from September, 2017

किमाम लगी सिगरेट

किताबें धुएं से भरी रहती। आंगन पर राख बिखरी रहती। आलों में और चारपाई पर सड़े हुए गले की तस्वीर के साथ केंसर की चेतावनी छपे खाली-भरे पैकेट पड़े रहते। तंबाकू की बासी गन्ध हर दीवार से चिपकी रहती और खिड़कियों के रास्ते रिसती जाती। मुंह का कसैले स्वाद से पुराना परिचय था। मगर एक लकीर के आगे धुआं असर खो देता। केवल तलब बची रह जाती है। जैसे सांकल में खुद अपना पैर रखा है और घसीट रहे हैं। जैसे दसों दिशाओं से प्रेम में लिपटे रहने पर भी सुकून नहीं आता। बार-बार चाहना से भीगे कोड़े को अपनी पीठ पर फटकारने से आवाज़ तो आती मगर क़रार न आता। ऊब बढ़ती जाती। प्रेम किये दुःख होय की चेतावनी भूलकर प्रेम में ही रम जाने के बाद सहसा कभी बेदिली होती ही है। बेअसर रिश्ते को ढोते हुए एक रोज़ ऊब जाते हैं। हम उसे एक तरफ रख देते हैं। दो चार दिन में ही तम्बाकू की गंध किताबों, दीवारों और खिड़कियों को छोड़कर चली जाती है। ऐसे ही किसी और से चाहा प्रेम भी एक रोज़ चला जाता है। हम एक खुली सांस लेते हैं। जो अपने भीतर उपजे और दूजे पर आश्रित न हो वही प्रेम रखना।

प्रेम के आगे चेक का निशान

तुमने एक बार झाँका  और चले गए  ये कैसा प्रेम करते थे तुम. रात टेबल पर पांव रखे थे. लम्बी कुर्सी पर अधलेटा था. पहला पहर ही बीत रहा था मगर बदन की नाव, नींद के दरिया में उतरने लगी थी. पहले हिचकोले में आँख खुली. दूजे हिचकोले के मोह में आँखें फिर से बंद हो गयी. प्रेम स्वप्न ही है. नींद का हो तो और अच्छा. हवा में कलाबाज़ी खाते बजरीगर की तरह प्रेम में चौंक थी. प्रेम में बंदरों वाला मौन था. क्षण भर ध्यान भरी प्रतीक्षा सा दीखता और क्षणभर बाद असंगत नृत्य में लीन मिलता. कभी-कभी प्रेम टीस भरा बेहद छोटा गाना था. कोई परिंदा मुंडेर पर बैठकर गाता और उड़ जाता. जब कुछ न होता तब प्रेम कीकर का सफ़ेद लम्बा काँटा हो जाता था. मैंने जो महसूस किया, वो लिखा. तुमने समझ लिया कि मैं कोई जादूगर हूँ. वे किताबें जिनसे तुमको अचानक मोहोब्बत हो जाती है, वे किताबें मेरी हसरतें न थीं. वे किसी लम्हे में बिना चाहना के उग आई थीं. उदासी, टूटन और हताशा थी. यही प्रेम भी था. किसी के साथ थे. तनहा थे. जहाँ जैसे थे, वैसा होने में ज्यादा शिकायतें न थी. प्रेम करते थे. फिर से प्रेम करने लगते थे. आते थे....

जाने किसलिए

हर बात, टीन ऐज़ का मसला नहीं है। यहां जो हासिल है, वही है। बाकी सब छोटी खुशियां हैं। जिनके बारे में पक्का कुछ पता नहीं होता। लोग फिर भी ख़्वाब सी ज़िन्दगी देखते हैं।  एक ही रास्ते से गुज़रते हुए हम देखना बंद कर देते हैं कि आस पास क्या है. यही हाल असल में हम ज़िन्दगी के साथ भी करते हैं कि उसे जीते समय भूल जाते हैं कि ज़िन्दगी जी रहे हैं.  रेलवे क्रोसिंग से पहले एक अंधा मोड़ पड़ता है। ड्राइवर देर तक विशल बजाता है। रेल की विशल के साथ परिंदे गोता लगाते हैं। जब भी कहीं रुक जाना होता है किसी मज़बूरी में केवल तब ही सोचने लगता हूँ अपने बारे में  कि पल भर में आसमान स्याह होने लगता है। तारे टिमटिमाते हैं। जाने किसलिए।  एक रोज़ पंख मिट्टी में दबकर मिट गए, आकाश नहीं टूटा कभी किसी के लिए। * * * अब कहाँ वादे, कहाँ मिलने का हौसला, कहाँ ठोकरों पर ज़माना। कभी कहीं पास हुए तो तुमको झुककर चूम लेंगे। * * * ज़िन्दगी के सब दांव हम खेल चुके हैं. हम हैं, यही बड़ी बात है. जब तक रहें शुक्रिया. * * *

सब खोए होंगे ख़यालों में

पूर्व प्रेयसियां भली थीं. उन्होंने ब्रेकअप के बाद कहा कि वो मेरे पीछे था. उसने मेरे लिए क्या कुछ न किया. मैंने आखिरकार अपना सब कुछ सौंप दिया. वह बेवफ़ा निकला. मगर उन्होंने ये कभी न कहा कि वह अपनी बीवी से उकताया हुआ था. वह उसे पसंद नहीं करता था. इसलिए ही भली थी. पूर्व प्रेमी भले नहीं थे. उन्होंने सबकुछ नष्ट करके भी पीछा नहीं छोड़ा. वे मौसमी घास की तरह उग आते रहे. कभी-कभी बदतमीज भी थे. कभी रोते थे और रोने के बाद भूल जाते थे कि वे अभी-अभी रो रहे थे. वे हर बार उतना ही टूट कर प्रेम करते थे. मगर हर बार प्रेम करके भूल जाते थे. इसलिए ही शायद भले नहीं थे.  * * * बेवजह की बात एक बार ज़ेहन में आती है तो वहीँ अटक जाती है. जब तक उसे कह न दो, वह अटकी रहती है. जैसे हम अपने प्रेम की किसी निशानी को कहीं रख देते हैं और भूल नहीं पाते. आज की रात चाँद खिला है. छत पर रोशनी है. दूर तक कुछ न कुछ दीखता है. मैं चारपाई पर अधलेटा. दो अलग ब्रांड की व्हिस्की को पीते हुए सोचता हूँ. उन लोगों का क्या होगा? वे जो अब प्रेम करेंगे. जाने क्या होगा मगर उनके लिए कुछ बेवजह की बातें धोखा लगातार...

इमोटिकॉन्स - भाषा में मोक्ष का मार्ग

कोई किस हाल में जी रहा है, ये तुम कभी भी जान और समझ नहीं सकते हो. इसलिए सबके लिए थोड़ा प्यार रखना. कुछ बोलकर किसी का भी दिल न दुखाना. * * * कल सुबह बारिश हो रही थी. बारिश के सुर में जीवन के आलाप को सुनते, मैं बहुत देर तक बालकनी से बादलों के बरसते हुए फाहे देखता रहा. चाय की ख़ुशबू, कहानी की किताबों के पन्ने, बाहर दूर तक फैली हरी झीनी चादर के बीच बने रास्ते सम्मोहक थे. जीवन में एक ठहरा हुआ सुकून भरा पल कितनी हीलिंग से भरा होता है? ये हम अक्सर समझ नहीं पाते हैं. अगस्त की आखिरी शाम को जयपुर की सड़कों से भीड़ गायब थी. जगतपुरा से विद्याधर नगर वहां से मानसरोवर होते हुए मालवीय नगर तक आते हुए देखा कि शहर किसी सुस्ती में डूबा है. शायद बारिश ने शहर की बदहवास दौड़ पर आराम का कोई फाहा रखा होगा. मॉल्स पर भीड़ नहीं थी. मैंने आभा से कहा- "बताओ क्या उपहार लिया जाये. कल आपका जन्मदिन है" आभा ने अपनी आँखों से इशारा किया जिसका अर्थ था- "मैं बेहद ख़ुश हूँ और जीवन ने जो दिया है, वह बहुत है." क्या सचमुच एक इशारे भर से इतना कहा जा सकता है? आप इससे असहमत हो सकते हैं. लेकिन वास...