Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2017

ऊधो, मन माने की बात

कच्ची धूप आ गयी है। चारपाई पर बैठ कर आभा कक्षा छठी की हिंदी की उत्तर पुस्तिकाएं जाँचने लगी। पहला वस्तुनिष्ठ प्रश्न था। सूर के पद किस भाषा में हैं। मेरी ओर देखते हुए कहती हैं- "सूर की भाषा" मुझे लगता है बिना पूछे ही प्रश्न कर लिया है। हिंदी साहित्य का कक्षा से अधिकांश अनुपस्थित रहा विद्यार्थी तुरन्त उत्तर देता है- "ब्रज भाषा" मेरा उत्तर सुनकर सन्तुष्ट हो जाती हैं। उत्तर पुस्तिकाएं जाँचने लगती हैं। इस कार्य के बीच आँख उठाकर मुझे देखती हैं। जैसे कह रही हों कि आपकी यही दुनिया है मोबाइल और सोशल साइट्स। ये समझकर मैं आरम्भ हो जाता हूँ। मधुप करत घर कोरि काठ में, बंधत कमल के पात॥ ज्यों पतंग हित जानि आपुनो दीपक सो लपटात। सूरदास, जाकौ जासों हित, सोई ताहि सुहात॥ पद को उदघोषक की तरह स्पष्ट शब्द स्वर में पढ़ता हूँ। वे मेरी ओर देखती हैं। मैं व्याख्या करने लगता हूँ। भ्रमर सूखी लकड़ी में घर बनाना है किंतु वह कमल की पंखुड़ियों में क़ैद हो जाता है। जैसे पतंगा अपना हित समझकर स्वयं दीपक की लौ से लिपट जाता है। सूर जिसका जिसमें हित अथवा मन होता है उसे वही सुहाता है। ...

भीगे सलवटों भरे बिस्तर

किसी को छू लेने की, चूम लेने की, बाँहों में भर लेने की या साथ रह लेने की इच्छा होने पर लोग झूठ बोलने लगते हैं कि मुझे तुमसे प्रेम हो गया है। इन झूठ से जितना जल्दी हो सके बाहर आना ताकि अपना समय और मन बरबाद होने से बचा सको। ताकि एक दिन झूठ का कालीन फट जाने पर पश्चाताप से न भर जाओ। ताकि कोई तुम्हारा नाम लेकर रोये नहीं कि तुमने प्यार-प्यार कहकर एक दिन छोड़ दिया। मैंने ये कब सीखा.  चाहना और प्रेम की धूमिल पहचान के बीच बनते-बिखरते सम्बन्धों के बीच निराशा, हताशा और अवसाद में कुछ साफ़ समझा न जा सकता था. अगर केवल चाहना भर थी. अगर उसे केवल देह के संसर्ग से पूर्ण हो जाना था तो हम उसे कुछ और कहकर क्यों पुकारते गये. अगर प्रेम था तो कहाँ गया?  देह के आमंत्रणों और उपभोग के बाद मन उचट जाता है. बस यही सब करना है? तो इसके लिए दुनिया भर की परेशानी नहीं उठानी. ये लम्हा आएगा और बीत जाएगा. जितनी बार आएगा उतना अपना असर खोता जायेगा. एक रोज़ सम्बन्ध और उससे बड़ी बात कि प्रिय को सदा के लिए खो देना.  तो क्या ये सब नहीं करेंगे? मैं समझ ही नहीं पाता मगर खुद से कहता हूँ कि जो म...

चाहना की प्रतिध्वनि

उसके होठों के छोर पर दो गोल बिंदियाँ रखीं थीं. उनको देखते हुए मैं एक अँधेरे में फिसलने लगा.  अचानक किसी ने मेरा हाथ थाम लिया. मैं ही अपने सामने मेरा हाथ पकड़ कर खड़ा था और मुझे ही कह रहा था कि कि ऐसे चेहरे जिनके होठों की मुस्कान दो सुंदर गोल बिन्दुओं में सिमटी हों, वे अपनी चाहना उम्र भर किसी को नहीं कहते.  मैं ख़ुद को कहते देखकर हैरत से भर जाता हूँ. मैं कहने वाले चेहरे की मुस्कान और होठों के सिरे देख लेना चाहता हूँ कि क्या उन होठों के किनारे दो गोल बिंदियाँ बनती हैं?  लेकिन मैं अपना हाथ छोड़ देता हूँ.  अँधेरे के भीतर फिसलने लगा. अपने हाथों की अँगुलियाँ खोल लीं. मुझे लगा कि यहीं-कहीं, भीतर गहरे दुःख और स्याह इच्छाएं ढक कर रखीं होंगी. कुछ पल अनवरत आँखें मूँदें स्याह असीमित अँधेरे के संसार में फिसलने के बाद हल्का उजास चारों ओर दिखाई देता है. दुःख और इच्छाओं को छूने की चाहना विस्मृत होने लगती हैं.  एक लिहाफ के भीतर नीम उजाला. स्याह कुरते पर कोई सलवट नहीं. वह अपनी चमक और अनछुई छवि के साथ एक करवट लेता है. मौन में कोई कहता है कि इस पेट के भीतर असंख्...

जो तुम नहीं हो

एक ठिठक निगाह में उतरती है. एक पेड़ से थोड़ा आगे बायीं तरफ़ घर दीखता है. घर से इक पुराना सम्बन्ध है. जैसे कुछ लोग होते हैं. जिनसे हम कभी नहीं मिले होते लेकिन उनको अपने सामने पाकर बहुत पीछे तक सोचने लगते हैं. याद का हर आला, दराज़ खोजने लगते हैं कि इसे कहाँ देखा है. ये हमारा पुराना कुछ है. वैसे ही उस घर का दिखना हुआ.  उस घर के अन्दर एक कॉफ़ी रंग के दरवाज़े के भीतर झांकते ही छोटा शयनकक्ष दिखाई दिया. बायीं ओर दीवार में ज़मीन को छूती हुई रैक के आगे कांच का पारदर्शी ढक्कन लगा था. बैड खाली था. वहां कोई न था कि ध्यान फिर से रैक की ओर गया. वहाँ पीले रंग की माइका का बना फर्श था. उस पर सफ़ेद चूहे थे. कोई दस बारह चूहे. उन चूहों के पीछे कोई छाया थी या एक गहरे भूरे रंग का चूहा था.  लड़की ने कुछ कहा. मैंने उसे देखा था मगर वह दिखी नहीं थी. जैसे कई बार हम कोई आवाज़ सुनते हुए महसूस करते हैं कि कोई पास खड़ा है और उसी की आवाज़ है. थोड़ी देर बाद पाते हैं कि वहाँ कोई नहीं है. हम स्वयं को यकीन दिलाते रहते हैं कि यहाँ कोई था. उसी ने कहा है. इसी तरह वह लड़की दिखी नहीं.  मैं उसे जानता था. उससे ब...

क्या सचमुच !

ख़यालों के टूटते ही, किसी काम के ख़त्म होते ही, मैं जहाँ होता हूँ वहाँ से बाहर जाना चाहता हूँ. अभी वर्डपैड को खोलते ही लगा कि एक बार बाहर चला जाऊं. मैंने चारपाई के नीचे देखा. वहाँ मेरे जूते नहीं थे. मैं अपने जूते थोड़ी देर पहले फर्स्ट फ्लोर पर रख आया था. वहाँ से पतले गुलाबी चप्पल पहन कर चला आया. चारपाई के पास वे ही रखे हैं. क्या मैं इनको पहन कर बाहर नहीं जा सकता? देखता हूँ कि एक चप्पल में टूटन है. वह अंगूठे के नीचे की जगह से चटक गया है. चप्पल को देखने से बाहर आते ही मुझे लगता है कि कहीं बाहर चले जाना चाहिए.  मेरे भीतर से कोई मुझे उकसाता है. मेरे ही भीतर से कोई मुझे लिए बैठा रहता है.  कहाँ जाऊँगा?  पलंग से चार हाथ की दूरी पर रखे फ़ोन से बीप की आवाज़ आई. मैंने समझा कि संदेशा आया है. उसमें लिखा है 'हाई'. पता नहीं लिखा क्या है पर मैंने यही सोचा. मैं फ़ोन तक नहीं जाना चाहता. मेरी हिम्मत नहीं है. अब से थोड़ी देर बाद फिर बीप की आवाज़ आएगी. शायद लिखा होगा 'बिजी?" मैं क्या सचमुच बिजी हूँ? शायद बहुत ज़्यादा. मेरा मन गुंजलक है. मेरे पास जवाब खत्म हो गए हैं. मैं केवल इस जगह...