किसी को छू लेने की, चूम लेने की, बाँहों में भर लेने की या साथ रह लेने की इच्छा होने पर लोग झूठ बोलने लगते हैं कि मुझे तुमसे प्रेम हो गया है।
इन झूठ से जितना जल्दी हो सके बाहर आना ताकि अपना समय और मन बरबाद होने से बचा सको। ताकि एक दिन झूठ का कालीन फट जाने पर पश्चाताप से न भर जाओ। ताकि कोई तुम्हारा नाम लेकर रोये नहीं कि तुमने प्यार-प्यार कहकर एक दिन छोड़ दिया।
मैंने ये कब सीखा.
चाहना और प्रेम की धूमिल पहचान के बीच बनते-बिखरते सम्बन्धों के बीच निराशा, हताशा और अवसाद में कुछ साफ़ समझा न जा सकता था. अगर केवल चाहना भर थी. अगर उसे केवल देह के संसर्ग से पूर्ण हो जाना था तो हम उसे कुछ और कहकर क्यों पुकारते गये. अगर प्रेम था तो कहाँ गया?
देह के आमंत्रणों और उपभोग के बाद मन उचट जाता है. बस यही सब करना है? तो इसके लिए दुनिया भर की परेशानी नहीं उठानी. ये लम्हा आएगा और बीत जाएगा. जितनी बार आएगा उतना अपना असर खोता जायेगा. एक रोज़ सम्बन्ध और उससे बड़ी बात कि प्रिय को सदा के लिए खो देना.
तो क्या ये सब नहीं करेंगे?
मैं समझ ही नहीं पाता मगर खुद से कहता हूँ कि जो मन आये करना किन्तु इंतज़ार करना. अपने आप होने देना. वह सबसे अच्छा होता है. हालाँकि वह भी होकर मिट जायेगा. एक पतली रोशनी की लकीर जैसी स्मृति बची रहेगी. उसके साथ चलते हुए तुम उन बीते दिनों तक पहुँच पाओगे जहाँ कभी थे.
उत्तेजना, मादकता, नीम थकान और पसीने से भीगे सलवटों भरे बिस्तर.
ज़िन्दगी को साबुत रखकर क्या करोगे. रख भी कैसे पाओगे. वह प्रतिपल नष्ट हुई जाती है. इसे जी लो. कभी याद की गली में फेरा दे सको. कभी मुस्कुरा सको, कभी पा सको वही गंध. प्रेम वस्तुतः स्वप्न है या फिर स्मृति.
[Picture credit : Parul Pukhraj]
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