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जो तुम नहीं हो

एक ठिठक निगाह में उतरती है. एक पेड़ से थोड़ा आगे बायीं तरफ़ घर दीखता है. घर से इक पुराना सम्बन्ध है. जैसे कुछ लोग होते हैं. जिनसे हम कभी नहीं मिले होते लेकिन उनको अपने सामने पाकर बहुत पीछे तक सोचने लगते हैं. याद का हर आला, दराज़ खोजने लगते हैं कि इसे कहाँ देखा है. ये हमारा पुराना कुछ है. वैसे ही उस घर का दिखना हुआ. 

उस घर के अन्दर एक कॉफ़ी रंग के दरवाज़े के भीतर झांकते ही छोटा शयनकक्ष दिखाई दिया. बायीं ओर दीवार में ज़मीन को छूती हुई रैक के आगे कांच का पारदर्शी ढक्कन लगा था. बैड खाली था. वहां कोई न था कि ध्यान फिर से रैक की ओर गया. वहाँ पीले रंग की माइका का बना फर्श था. उस पर सफ़ेद चूहे थे. कोई दस बारह चूहे. उन चूहों के पीछे कोई छाया थी या एक गहरे भूरे रंग का चूहा था. 

लड़की ने कुछ कहा. मैंने उसे देखा था मगर वह दिखी नहीं थी. जैसे कई बार हम कोई आवाज़ सुनते हुए महसूस करते हैं कि कोई पास खड़ा है और उसी की आवाज़ है. थोड़ी देर बाद पाते हैं कि वहाँ कोई नहीं है. हम स्वयं को यकीन दिलाते रहते हैं कि यहाँ कोई था. उसी ने कहा है. इसी तरह वह लड़की दिखी नहीं. 

मैं उसे जानता था. उससे बहुत दिनों का परिचय था. हम परिचय के मार्ग में इतनी दूर आ गए थे कि एक ही बिस्तर पर सोये हुए बातें करने का निषेध नष्ट हो चुका था. देह कोई लेकर कोई विशेष आग्रह न बचा था. हमने कभी एक दूजे को छुआ नहीं था लेकिन मन के भीतर छू लेना कब का हो चुका था. वह इतना पुराना हो चुका था कि उसे लेकर कोई लज्जा या पश्चाताप न था. 

उस लड़की की बात सुनकर, मैं जाने क्यों कुछ दूर आगे के एक घर में जाता हूँ. वहाँ मुझे लड़का मिलता है. ये वही लड़का है जिसका लड़की से कोई सम्बन्ध जान पड़ता है. ऐसा सम्बन्ध कि जैसे उसका लड़की पर कोई अधिकार है. वो जो टीनएज का अधिकार हुआ करता है. 

मुझे लगता है कि कुछ गड़बड़ है. मैं कहीं गलत जगह चला आया हूँ. अचानक देखता हूँ कि वे चूहे भी वहाँ हैं. इस बार मुझे सफ़ेद चूहों के बीच गहरे भूरे रंग का चूहा साफ़ दिख जाता है. सफ़ेद चूहे अपनी लय और सोच में खोये होते हैं जबकि वह अकेला चूहा अपना सर उठकर मेरी ओर देखता है. 

मैं कुछ अपराध कर रहा हूँ. 

मुझे अपराध गंध आती है. उन घरों से बाहर गली में चलते हुए कोई साया हिलता है तो चौंकता हूँ. कोई फर्री हिलती है, कोई बोर्ड रोशनी में चमकता है, कहीं कोई दरवाज़ा जरा खुलता है तो हर आहट, हर विचलन मेरे लिए हुआ जान पड़ता है. 

मैं इस लड़की के जीवन के आस-पास भटक रहा हूँ. जिस तरह उसके घर से चार घर आगे गया था, उसी तरह कुछ घर पीछे के एक घर में चला आता हूँ. पानी के हौद में कुछ डूब गया है. मैं जानता हूँ कि वह कहाँ डूबा है और कौन है. 

लोग सवालियां निगाहें लिए जमा हैं. वे असल में जानते ही नहीं कि क्या डूब गया है मगर उनको इस बात की परवाह है. मैं उस भीड़ से बाहर जाने का सोच ही नहीं सकता. इसलिए कि मैं वो व्यक्ति हूँ जिसे मालूम है. मेरा चला जाना ठीक नहीं है. 

लड़की की पीठ पर हाथ रखे उसे ख़ुद की ओर थामे हुए लम्हे की याद आती है. फिर लगता है कि वह चाहना, रुमान और उत्तेजना उसी पल थी. अब उस लड़की के पास उस अहसास की याद भी ठीक से बाकी नहीं है. 

मैं थक जाता हूँ. 

भय मेरी याद के टुकड़े करता जाता है. मैं इन बेढब और बेतरतीब टुकड़ों को जोड़ना चाहता हूँ किन्तु बिना ज़ोर डाले जिस सलीके में याद आते हैं रख देता हूँ. अपना हाथ मुंह के आगे रखकर हवा को बाहर फेंकता हूँ. सूँघ लेना चाहता हूँ कि मेरी साँस में व्हिस्की की कितनी बासी गंध है. मुझे गंध नहीं आती. पार्क एवेन्यू के किसी परफ्यूम का हल्का झोंका याद आता है. 

मैं हिम्मत करके अपनी कलाई को सूँघता हूँ. जैसे हम किसी खोये हुए प्रिय को याद करते हैं. 

मैं रजाई से बाहर आता हूँ. सीढियाँ चढ़कर छत पर खुली हवा में खड़ा होकर देखता हूँ. सामने पहाड़ी के पार काले बादलों के छोटे फाहे सजे हुए हैं. दायीं तरफ बरफ के रंग के बादलों की लम्बी लकीर है. हवा ताज़ा है. 

मैं कहता हूँ केसी ! तुम यकीन मानो इस एक ही दुनिया में असंख्य दुनियाएं हैं. तुम लगातार संक्रमण में हो. तुम अनेक संसारों के अनगिनत अनुभवों से भरते हो. लेकिन ख़ुद को एक भुलावे में रखते हो कि ये सपना है, जागती आँखों का सोच में खो जाना है, ये किसी का सताना या बिछड़ जाना भर है. 

अच्छा ये भी याद करना कि तुम कितने लोगों के साथ जी लिए हो? तब तुमको यकीन होगा कि जीवन असल में एक जन्म से मृत्यु तक का स्थूल देखा जाने वाला सफ़र भर नहीं है. एक ही जीवन में हम कई बार कितने ही लोगों के साथ जीते हैं और मर जाते हैं. कितने ही सम्बन्ध बनाते और मिटा देते हैं. वे सब अलग-अलग जीवन हैं. 

असल में तुम जिस रोज़ उसकी छातियों के बीच सर रखे हुए अचानक जाग गए और वह सम्बन्ध नहीं रहा, उस दिन तुम मर गए थे. वो जो थी, वह भी उसी पल नष्ट हो गयी. तुम दोनों आगे नए जीवन में चले गये. 

मैं कोई और था जो तुम्हारी बाँहों के पसीने में अपनी नाक घुसाए था. तुम वो लड़की नहीं हो जो मेरे बालों को दोनों हाथों की अँगुलियों में भींचकर अपने करीब किये थी. वे लोग चले गए. वे कोई और थे. तुम और मैं चाहें तो भी उनको लौटा नहीं सकते.

एक बार मैंने पिता को याद किया तो पाया कि अनेक स्मृतियों में पिता के आस पास बैठा हुआ मैं बहुत अलग-अलग था और पिता भी अलग थे. उनको अगली बार याद करूँगा तब वे कोई और होंगे मैं कोई और. 

दुर्घटनाओं को न्योता दो, सम्भव है कोई क्षणिक मुक्ति कहीं प्रतीक्षा करती हो. 
* * *

[Painting courtesy;  Rahul Malpani]

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