Skip to main content

चाहना की प्रतिध्वनि

उसके होठों के छोर पर दो गोल बिंदियाँ रखीं थीं. उनको देखते हुए मैं एक अँधेरे में फिसलने लगा. 

अचानक किसी ने मेरा हाथ थाम लिया. मैं ही अपने सामने मेरा हाथ पकड़ कर खड़ा था और मुझे ही कह रहा था कि कि ऐसे चेहरे जिनके होठों की मुस्कान दो सुंदर गोल बिन्दुओं में सिमटी हों, वे अपनी चाहना उम्र भर किसी को नहीं कहते. 

मैं ख़ुद को कहते देखकर हैरत से भर जाता हूँ. मैं कहने वाले चेहरे की मुस्कान और होठों के सिरे देख लेना चाहता हूँ कि क्या उन होठों के किनारे दो गोल बिंदियाँ बनती हैं? 

लेकिन मैं अपना हाथ छोड़ देता हूँ. 

अँधेरे के भीतर फिसलने लगा. अपने हाथों की अँगुलियाँ खोल लीं. मुझे लगा कि यहीं-कहीं, भीतर गहरे दुःख और स्याह इच्छाएं ढक कर रखीं होंगी. कुछ पल अनवरत आँखें मूँदें स्याह असीमित अँधेरे के संसार में फिसलने के बाद हल्का उजास चारों ओर दिखाई देता है. दुःख और इच्छाओं को छूने की चाहना विस्मृत होने लगती हैं. 

एक लिहाफ के भीतर नीम उजाला. स्याह कुरते पर कोई सलवट नहीं. वह अपनी चमक और अनछुई छवि के साथ एक करवट लेता है. मौन में कोई कहता है कि इस पेट के भीतर असंख्य जटिलताएं हैं. वहां कोई दर्द रखा है क्या? ये सवाल मैं ख़ुद से करता हूँ. शायद मैं पूछता नहीं हूँ, मैं सोचता हूँ कि इस पेट पर अपनी हथेली रख दूँ. क्या मैं शायद खुद को जादूगर समझता हूँ. कोई शिफा है मेरे हाथ में? 

नहीं! मेरे हाथ में प्रेम की छुअन है. प्रेम दुःख के लिए सबसे बड़ा मरहम है.

दो हाथ सामने थे. ये अचरज था. ऐसा अचरज कि हम अचानक कली का चटकना देख लें. नाज़ुक अनछुई पत्तियों की हलकी छवि देखने लगें. उन दो हाथों की अँगुलियों को अपनी अँगुलियों में भर लिया. सहसा एक लहर सी आई और रेत पर बनी उत्तेजना को मिटा गयी. 

मैं खुली आँख से होठों के किनारे की बिंदियों को याद करे लगा.

दोपहर अनमनी थी. कड़ी धूप, खोया-खोया मन और नष्ट हो चुके जीवन राग का मद्धम प्रवाह.

उल्फत ने कहा- "आपके साथ सब कुछ बेहतर है लेकिन आप भीतर से ठीक नहीं है. कहीं उलझे और परेशां से हैं" मैं हामी भरता हूँ. "हाँ ऐसा ही है. सच! मुझसा जीवन एक निश्चिंतता और आनंद का जीवन कहलाता है. लेकिन... यहाँ बहुत सी बेचैनी रखी हैं. ये कारखाना लगातार चलता रहता है. कोई नयी इच्छा, नई आवाज़ खोज लाता है" 

रात दबे पाँव आती है. अचानक मन बेतहाशा भागता है. उसी मुस्कान को देखने के लिए. उन्हीं दो गोल घेरों की छाया में. उन तक भागते हुए लगता है कि समय की कोई सीमा है. वह समाप्त हो जाये उससे पहले पहुँचो. भय, थकान और प्रतीक्षा. 

मैं गिर जाता हूँ. दो बिंदु चमक रहे हैं. मेरे भीतर से कोई उनको पुकारना चाहता है मगर नहीं पुकारता. मैं आहिस्ता से आँखें बंद कर लेता हूँ. वहाँ आंसू नहीं है मगर कुछ है भारी सा. किसी की चाहना जितना भारी. 
* * * 

खुली और बंद आँखों में एक ख़्वाब सिलसिले से बनता है. 

हम अक्सर ज़मीन के नीचे एक सुरंग खोदने लगते हैं. अजाने, बेमकसद उस ओर बढ़ते रहते हैं. उसके बहुत करीब जहाँ से हमारी चाहना की प्रतिध्वनि सुनाई पड़े, वहाँ तक पहुँचकर चौंक जाते हैं. 

मुझे ज़िन्दगी ने सिखाया है कि कोई सबक आख़िरी नहीं है. इसलिए मैं नए भंवर में कूद जाता हूँ. 
* * *
[Picture courtesy : Hannah Aradia]

Popular posts from this blog

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउ

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्यों की थी।  उनकी कथाओं के

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न