फासलों की वजह काश उम्र ही हो.
गहरे रंग वाले फूल ने धूप ज़्यादा सही। बारिशों का लम्बा इंतज़ार किया। उसने जाना कि इस पल जो पास खिला है, उसे नाज़ुकी से छू लो। ये पल किसी प्रतीक्षा के लिए नहीं है।
एक हल्के रंग के फूल ने चटकते ही मादक गन्ध महसूस की। उस ख़ुशबू का ख़यालों में पीछा किया। सपनों की दुनिया गढ़ी। ऐसा होगा, वैसा होगा मगर दुनिया का हिसाब सही न था। फूल के पास आशाओं की गीली कूचियां थी जबकि समय के पास ऊब की उदास धूप थी।
उम्र के फासले को कुतर कर एक दिन छोटा फूल बड़े फूल से सटकर बैठ गया। छोटे ने पूछा- “हमारा क्या होगा?” बड़े ने कहा- “तुमको दुख हो सकता है और मुझे शायद न हो” छोटे ने विस्मय किया- “ऐसा क्यों?” बड़े ने कहा- “उम्र की एक लकीर के उस पार पहुंच जाने पर तुमको ये समझ आएगा कि जीवन को न जियोगे तो भी बीत जाएगा।”
छोटे फूल ने पूछा- “क्या तुमको कभी दुःख न हुआ?” बड़े ने कहा- “एक दिन सब छोटे ही होते हैं” छोटे ने खुले मुंह उसे देखा- “दुःख न होने का कोई रास्ता है?” बड़े फूल ने कहा- “नहीं। मगर किसी का होने की हिम्मत करना। होकर पछताना नहीं। ऊब जब उदास करने लगे वहाँ से कहीं और चले जाना”
छोटे फूल ने शब्दों पर ज़ोर देते हुए दोहराया- “कहीं और चले जाना?”
बड़े फूल ने कहा- “फ़िलहाल तुम इसे मेरा जवाब समझ रहे हो. जब तक कि ये तुम्हारा जवाब न हो जाये, ये किसी काम का जवाब नहीं है. एक रोज़ किसी घने स्याह लम्हे में तुम ख़ुद से कहोगे, बहुत हुआ. अब चलो”
छोटा फूल इस बात पर यकीन करने की जगह अब भी अपने हिसाब से करना चाहता था. जब दुःख आयेंगे. दुखों के पार ऐसी समझ आयेगी तब देखेगा. छोटे फूल को चुप देखकर बड़े ने कहा- “पहाड़ भी चलते हैं.” इस बात को सुनकर छोटा फूल अपने भीतर की यात्रा से बाहर आया. “कैसे?” बड़े ने कहा- “पिछले बरस पहाड़ की तलहटी में हम खिले थे. इस बरस उससे दूर खिले हैं. इसका मतलब है कि पहाड़ अब वहां नहीं रहा. वह दूर जा चुका है”
छोटे फूल ने कहा- “हो सकता है हम ही कहीं और दूर जाकर खिले हों’
“ऐसा नहीं हो सकता. पहाड़ की तलहटी के फूल पहाड़ की तलहटी में खिलते हैं. दिमाग के फूल दिमाग में और दिल के फूल दिल में ही खिलते हैं.”
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