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जातिवाद - कर्क रोगों में सर्वाधिक गंभीर रोग

गिद्धों के स्वप्न में भूख से मरते प्राणी होते हैं। निम्नस्तर की राजनीति में विचारहीन धड़ों में बंटे हुए लोग होते हैं।।

महान चिंतक चाणक्य ने कहा है "जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।"

किसी भी धर्म और जाति में सब सज्जन हों, ये कामना करना असम्भव सा है। हर स्थान पर ओछे-टुच्चे, नीच-कमीने, लालची-धोखेबाज़ और इसी तरह कमतरी के दोषों से भरे लोग होते हैं।

बाड़मेर में कुछ दिनों से निरन्तर अफवाहें बढ़ती जा रही हैं। जाट और राजपूत नाम से धमकियां ली और दी जा रही है। दिन प्रतिदिन घटित होने वाली घटनाओं को असहज जातिगत रूप देकर प्रस्तुत किया जा रहा है।

बाड़मेर शहर में कुछ एक घटनाओं को लेकर आम चर्चा है। उन घटनाओं का उल्लेख करना असल में उनको हवा देना होगा इसलिए मैं उनका उल्लेख नहीं कर रहा हूँ। लेकिन कुछ रोज़ पहले एक ज़मीन के टुकड़े को लेकर हुए विवाद में एक ही जाति के दो पक्ष लहूलुहान हो गए थे। सोचिये अगर ये सब दो अलग जाति के पक्षों में हुआ होता तो मौकापरस्त इसे कितना भयानक रूप दे देते।

फेसबुक की कुछ पोस्ट्स से आपको मालूम होगा कि राजपूत चुनाव के बाद जीतते ही जाटों को मार-मार कर औकात याद दिला देंगे। इसी तरह जाट भी राजपूतों को मार-मार कर उनकी हेकड़ी निकाल देंगे। ऐसे कमेंट्स फेसबुक पोस्ट्स पर आ रहे हैं और उनको शेयर किया जा रहा है। ये कमेंट्स जातीय विद्वेष को बढ़ाने के सिवा कुछ उपयोगी नहीं है। इन कमेंट्स पर प्रशासन कार्रवाही कर सके, इतने संसाधन और तकनीक अभी सहज उपलब्ध नहीं है।

प्रशासन के पास शांतिपूर्वक चुनाव कराने का महत्वपूर्ण दायित्व है। अभी ऐसी एक-एक टिप्पणी पर कार्यवाही असंभव है। जब कोई गंभीर मसला होगा तब ही कुछ किया जा सकेगा।

आप पढ़े लिखे हैं। आप तकनीक को थोड़ा बहुत जानते हैं। आप ये क्यों नहीं सोचते कि कोई भी व्यक्ति किसी भी जाति के नाम से फेसबुक खाता बना सकता है। ये भी एक बार क्यों नहीं सोचते कि ये आईडी किसी जाट या राजपूत की होने की जगह किसी अन्य ने दो जातियों के बीच वैमनस्य बढ़ाने के लिए बनाई हो सकती है।

अच्छा कोई तो जीतेगा ही। क्या उसके जीतते ही जीतने वाले की जाति के लोग दूजी जाति पर बर्बर आक्रमण करने में लग जाएंगे?

कानून अभी बचा हुआ है। पुलिस में ईमानदार लोग भी हैं, नेताओं में भी लज्जा शेष है। वे समाज को तोड़ने वाली घटना पर समाजकंटकों का साथ नहीं देंगे। उस समय अपराधी रीढ़विहीन हो जाएगा। उसे अपने कर्मफल को भोगना होगा।

पिछले और कई पिछले चुनावों में जातिगत झगड़े हुए। कभी जान भी गयी। आप याद करिये कि जिन नेताओं के लिए लोग लड़े क्या उन्होंने कभी बचाव के कुछ काम किये। अगर किसी ने पक्षधरता की तो क्या वे न्यायपालिका से अपराधियों को बचा पाए?

आप लड़िये। नेता चुनाव के चार साल बाद आपके लिए सामाजिक पंचायत कर लेंगे। एक जुलूस निकालेंगे। समाज की प्रतिष्ठा और न्याय के लिए हुंकार भरेंगे। लेकिन इन चार सालों में आप कितना भोगेंगे? उसका हिस्सेदार आपके परिवार के सिवा कौन बनेगा? सोच लीजिये।

जाति के नाम पर लड़ाने की कोशिशों से सावधान रहिये। जातीय विद्वेष फैलाने वाले को आप व्यक्तिगत रूप से जानते हैं तो उसकी शिकायत कीजिये।

सड़ी गली पुरातन बातों के कीच में डूब कर नष्ट मत होइए। मनुष्यता को बंटने मत दीजिये। चुनाव सोच समझकर कीजिये। अपने मत का प्रयोग करके देश को दुनिया में सबसे बड़ा और शानदार लोकतंत्र बनाने में योगदान दीजिये।

गिद्ध मंडरा रहे हैं और भूख हद बढ़ चुकी है। प्यारे लोगों सावधान रहिये। 
* * *

चेतावनी : 
तम्बाकू सेवन से कर्क रोग हो सकता है। जातिवाद कर्क रोगों में सर्वाधिक गंभीर रोग है।
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