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कोई खोया हुआ शख्स

बढ़ई का रणदा था. जब भी दिल पर कोई दाग़ लगा, दिल को छील कर नया कर लिया. एक मोची वाली सुई थी, दिल में छेद करके, दिल को सी लिया. मोहोब्बत के सितम की कड़ी धूप में दिल सूखने लगा तो कच्ची शराब थी, उसमें भिगो कर रख दिया. दिल बरबाद तो हर तरह से हुआ मगर किसी न किसी तरकीब से उसे मरने नहीं दिया.

एक दोस्त ने कहा- "केसी दिल की बातें अक्सर जुबां तक आते-आते टूट जाती हैं. कुछ पोशीदा बातें कहने का जरिया होना ही चाहिए." मैंने कहा- "बातें दिल में पड़ी रहे तभी तक अच्छा. ग़ालिब के सलीके में ये बात कुछ ऐसी है कि मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में."

दरअस्ल मैं क्या हूँ? ये मैं ख़ुद नहीं जानता हूँ.

मेरी प्रोफाइल में छांटकर लगाई चंद तस्वीरें देखकर. मेरी कही कुछ कहानियां पढ़कर. मेरी डायरी में लिखे ज़िन्दगी के कड़वे, खट्टे और नंगे शब्दों से दो-चार होकर किसी ने अपने आप को कहीं खोज लिया होगा. कोई खोया हुआ शख्स याद आया होगा. कच्चे दिनों में लिए बोसे का निशाँ फिर से उभर आया होगा. कोई एक टीस उठी होगी. कभी बदन ने थककर ख़ुद को बिस्तर पर इस तरह पटक दिया होगा कि ऐ ज़िन्दगी अब तुम्हारा बोझ बढ़ गया है.

दोस्तों की आमद मेरी पोस्ट्स पर हमेशा रहती है. वे गहरी मोहोब्बत से दुआ-सलाम करते हैं. उनको देखकर नए-नए जानने वाले मुझे कोई सेलेब्रिटी समझ लेते हैं. एक ऐसा आदमी जिससे हर कोई मोहोब्बत करता है. अक्सर उनको ये भी लगता होगा कि मेरे इनबॉक्स में महफ़िलें सजी रहती हैं. जहाँ हम बेहिसाब बातें किया करते हैं. ये धोखा भी होता होगा.

असल में जब कुछ एक दोस्त हाथ थामकर चलते हैं. पब्लिक प्लेस पर मुझे गले लगाये खड़े रहते हैं. मुझसे कहते हैं, आपकी अंगुलियाँ चूम लूँ. उनको मेरी कहानियों के किरदारों के दुःख बांधते हैं. एक लम्हे की मोहोब्बत की दुआ में जी रहे पात्र अपील करते हैं. इन दोस्तों को धूप में खिले पीले फूलों, सीढियों की बेबसी, रास्तों के इंतज़ार, स्याह रातों की बेचैन उदासियाँ, दोपहरों के कड़े एकांत अपने पास खींचते रहते हैं.

मैं शायद इतना भर ही हूँ.

किसी की इल्तज़ा नहीं हूँ मैं किसी की फरियाद नहीं हूँ. अगर हूँ तो मैं उसे छोड़कर चला जाता हूँ.

हम अक्सर एक व्यक्ति होते हैं लेकिन सोशल साइट्स हमको संस्था बना देती है. शिकवे आने लगते हैं कि मैसेज पढ़ो तो जवाब दिया करो प्लीज़. लेकिन एक रोज़ आप ऐसे मक़ाम पर आ जाते हैं जहाँ से सबको जवाब नहीं दे सकते. जहाँ से आप किसी का हाथ नहीं थाम सकते. जहाँ से आप किसी को चाहकर बाँहों में नहीं भर सकते. उस समय आपका जीना ख़त्म हो चुका होता है. बस उसी जगह हूँ.

20 अगस्त 2017 की डायरी।

तस्वीर मनोज ने भेजी है।

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