जीवन रंगीन पैबल्स के लुढ़कने का कोई खेल है। अनिगिनत रंग बिरंगे पैबल्स अनजाने-अनदेखे रास्ते पर लुढ़कते हुए टकराते हैं। साथ चलते है। बिछड़ते हैं। कोई रास्ते से बाहर उछल जाता है। कोई टूटता हुआ बढ़ता रहता है। अंततः हर पैबल रंगीन धुएं में बदल जाता है। इस खेल में हमारा सफ़र खत्म हो जाता है। कभी दफ़्तर से लौटकर, कॉलेज से आकर, दुकान से आकर लगता है कि कितना बोझिल है। इससे हम कब मुक्त होंगे। घर साफ करते, खाना पकाते, परिवार को आकार देते हुए एक मोड़ पर यह सब भी बोझिल होने लगता है। हताशा उगने लगती है। उस पल कभी सोचा है कि आज का हो गया। सो सके तो कल जागेंगे तब देखेंगे। इतना भर सोचते ही सब मुश्किलें यथावत होते हुए भी एक कदम पीछे छूट जाती है। कि क्या सचमुच कई बरसों में कुछ बनाने का लक्ष्य पक्का साधा जा सकेगा? नहीं, नहीं कभी नहीं। फिर क्या है? किस बात की चिंता। वह जो पार्टनर है, वे जो बच्चे हैं, वह जो काम है। इतना मत सोचो, ये सब अलग हैं। सब का अपना रास्ता है। सब रंगीन पैबल्स अपने ढब से आगे बढ़ेंगे। कौन कब कहाँ होगा कोई नहीं जानता। फिलहाल एक बार आराम से बैठ जाइए। आप ज़िंदा हैं, मशीन नही...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]