चाहना कोई काम थोड़े ही था कि किया या छोड़ दिया जाता। ये तो वनफूल की तरह खिली कोई बात थी। उसे देखा और देखते रह गए। वह दिखना बंद हुआ तो उसकी याद आने लगी। उस तक लौटने लगे तो खुश हुये। उससे मिल लिए तो सुकून आया।
तुम वनफूल से थे, वो किसी खरगोश की तरह तुम्हारे रास्ते से गुज़रा होगा।
इस में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं है। सबकुछ एक रोज़, एक लम्हे के लिए होता है। ज़रा ठहर कर सोचोगे तो पाओगे कि उस लम्हे का होना, होने से पहले था और होने के बाद भी वह है। मगर तुम केवल वही होना चाहते हो जिसमें पहली बार में बिंध गए थे।
चाहना का भूत और भविष्य कुछ नहीं होता। इसे को न चाह कर बनाया जा सकता है न मिटाया। जाने दो।
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