एक रस्म सी बन गई है
तुझे भूल जाने को, तुझे ही याद करना।
क्या कुछ नहीं बीतता। सब कुछ। माने कोई शै नहीं जो साथ बनी रहे। उदास, हताश, अवसाद से भरे मगर फिर भी किसी आस में कभी मुस्कुराते हुए कभी बेख़याली में कहीं चल पड़ते हैं। जब चल नहीं सकते तो चले जाने का स्वप्न देखते हैं।
मैं हर बरस की आख़िरी शाम एक पोस्ट लिखता हूँ कि बरस कैसा था?
इस बार याद ही नहीं कि शहर, देश और दुनिया में क्या घटा। कौन किस तरह, किस राह चला गया। क्या था जिसकी आस थी और इंतज़ार में उसी ढब बैठे रह गए।
अपनों की पार्थिव देह से पटी हुई धरती को देखना सबसे भयावह था। पूर्व की पीढ़ियों की ज़ुबान से यदाकदा सुने गए महामारी के किस्सों में जो दहशत थी। उसी को अपनी आंखों से देखना, यही इस बरस का नग्न सत्य था। जिस पर डाले जा रहे पर्दे मौन आहों से चाक होते गए। आंसुओं का सैलाब पार्थिव देहों पर पड़ी ज़रा सी रेत को बहाकर ले गया।
ये अविश्वसनीय, दुःखद और असहनीय था।
समाज को बांटने वाली ज़ुबादराज़ राजनीति ने पिछले दशक में दुनिया के हर देश के नागरिकों को बांटा। इसी मंत्र से सत्ताएं हथियाई गईं। राजनीतिक हमले किए गए और मनुष्यता की गर्दन पर पांव रखकर नाच किया गया। किंतु वैश्विक महाशक्ति के नागरिकों ने मामूली अंतर से फिर समानता और साझेपन को चुन लिया।
तालिबान लौट आए। उनका आना हैरत की बात नहीं है। तालिबान वैश्विक शक्तियों की एक कठपुतली ही है। धागे से बंधे हथियारों वाले हाथ किसी के इशारों से ही चलते हैं।
धर्म आधारित तमाम संस्थाओं में स्त्री दोयम दर्जे की है। तमाम पाबंदियां उसी पर आयत होती हैं। आदमियों के संसार में वही एक ख़तरा होती है। इसलिए शिक्षा, रोज़गार और आत्मनिर्भरता छीन ली जाती है। तालिबान की वापसी इसी दुःस्वप्न का सच होना है कि आधुनिक दुनिया असल में अभी भी आदिम दुनिया से बदतर दुनिया ही है।
मुझे इस बरस के बारे में याद कम ही है। मैं थोड़ा सा लिखता हूँ और बहुत सारा सोचता हूँ मगर कुछ याद नहीं आता। यहां तक कि अपने बारे में भी याद नहीं कर पाता कि ये बरस कहाँ गंवा दिया। इस बरस की याद में सुबह शाम स्कूटर लिए अपने क़स्बे में भागता हुआ याद आता हूँ। क़स्बे से बाहर की याद में जयपुर शहर का रास्ता याद आता है।
हम दोनों ड्राइव कर रहे हैं और समय बीतता जा रहा है।
मैं कितना बदल गया हूँ। मैंने क्या सीखा। मैं क्या हो सकता था। ऐसे सवाल खुद से पूछता हूँ तो कभी मुस्कुराता हूं, कभी चुप हो जाता हूँ।
अब मैं निजी जीवन, परिवार के हाल, दोस्तो और अपने काम के बारे में नहीं लिखता। मैं ऐसा क्यों करने लगा हूँ इसकी कोई ठीक वजह नहीं मालूम होती।
मेरी चाहना, निजी सम्बन्ध, खराब कही जाने वाली आदतें माने जैसा और जो कुछ मैं हूँ, उसके बारे में लिखने से कोई परहेज नहीं है। असल में मैंने बरसों एक खुली डायरी लिखी। प्रेम कविताएं लिखी। उदास कहानियां लिखी। यात्रा वृतांत लिखे। इस सब को लिखकर खुशी ही हुई।
मैं अगले बरस क्या करूँगा? इस बारे में कुछ सोचना फिजूल है। इसलिए कि मैं खुद को नहीं जानता कि मैं कैसा आदमी हूँ, जिसे क्या करना चाहिए। और न ये जानना चाहता हूँ।
मैंने डूबकर प्रेम किया। तुम भी यही करना। प्रेम में कुछ भी बरबाद नहीं होता है। अगर समझ सको कि प्रेम कोई लकीर नहीं है, जो खिंचती चली जाए। ये एक लम्हे की बात भर है। अनेक लम्हे जुटाना। प्रेम के दुख ही सच्चे हासिल हैं।
इस बरस जो मिले। उन सबको लव यू। जो मुझे मिले, उनको मुझ से बेहतर इंसान नए बरस में मिलें। दुआ।