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बता दो कि तुम हो।

शराबियों का नियम है 
कि झगड़ना है, हिंसक हो जाना है 
फिर एक दूजे पर गिर पड़ना है। 

प्रेमियों का हाल इनसे भी बुरा हैं। 

~रूमी 
[जलाल उल दीन मोहम्मद रूमी 1207 से 1273 तुर्की]

मेरा हाल इन दोनों से खराब रहता है कि मैं सोशल साइट्स पर एक मुकम्मल ऐंटीसोशल की तरह रहता हूँ। हर जगह हूँ और कहीं भी सोशल नहीं हूँ। 

मेरे फॉलोवर नहीं है। मेरे दोस्त हैं। चाहे वे फेसबुक पर हों, इंस्टा, ट्विटर, ब्लॉगर और भी कहीं हो। मैं उनके संदेशों का, अपनेपन का, प्रेम का जवाब नहीं दे पाता। 
अखरता ही होगा मगर क्या कीजे। 

कोई किताब मंगवाता है तो सूचित करता है। वह अपना प्रिय माध्यम चुनता है। मैं सब प्लेटफॉर्म्स से उकताए हुए रहता हूँ। दोस्तों और पाठकों के मैसेज देखकर बेहद प्रसन्न होता हूँ लेकिन समझ नहीं आता कि उनको जवाब में क्या कहूँ? 

इसलिए शुक्रिया हमेशा समझा जाए। 

बहुत बरस हुए। जाने कितने बरस। लिखने वालों के लिए मेरे भी गहरे सम्मोहन रहे हैं। वे अजीर्ण हैं। किसी आहट, किसी झांक, किसी धुएं की गंध, ऑटो के भीतर तक आती हवा की अनूठी महक, बेजान और रूखी सड़क पर सबसे अधिक आत्मीय यात्रा। माने कुछ भी भूल के हिस्से में नहीं जाता। 

सम्मोहन ठहरे रहते हैं। जैसे किसी ध्रुव पर बर्फ में कोई अहसास रख दिया है। ट्रैफिक सिग्नल की बत्तियां उदास खोई सी खड़ी रहती हैं लेकिन एक नरम दोशीज़ा छुअन मुसलसल बनी रहती है। किस बात की ख़ुशी जब बर्फ सी हवा हो, सूने रास्ते हो और पहुंचने के लिए कोई ठिकाना न हो। 

बस साथ होने की खुशी। 

जीवन इतना भर ही है कि महसूस करो और चुप रहो। अपनी रुचि को जियो, आनंद के अतिरेक तक पहुंचो मगर कुछ कहो मत। बस इतना सा बता दो कि तुम हो। 

मुझे कभी दो लोग शराबी और प्रेमी की तरह याद आते हैं। मैं देखता हूँ कि एक चश्मा प्रेम के नीचे दबकर बिगड़ गया है। 

सोशल एटिकेट्स जाने क्या हैं? मगर मेरे लिए इतना है कि अपना मन बता दो तो अच्छा है, नहीं बताओ तो सुख है। 

शुक्रिया।

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