डिजिटल क्रिएटर्स का बरस

बंदर दीवार पर कतार में बैठे हुए, इंस्टाग्रामर टिकटोकियों के करतब देख रहे थे। 

बंदर बहुत अधिक प्रभावित नहीं लग रहे थे। सारे फ्लिप और समरसॉल्ट और उनके रीटेक स्तरीय नहीं थे। अभी भी बंदर उनको अपनी कम्युनिटी में शामिल करने के प्रति आश्वस्त नहीं थे। 

हर जगह यही नज़ारा था। नवीन प्राचीन स्थल, मॉल्स, कबूतरों के दाने की जगह, खुली सड़क पर कोई न कोई कुछ क्रिएट कर रहा था। मोबाइल वालों के बीच कैमरा वाले भी काफी थे। इस बरस के बीतने से पहले संसार यू ट्यूबर और इंस्टाग्रामर हो चुका था। 

कल अपनी और आभा की एक तस्वीर फेसबुक पर शेयर की तो बचपन के सहपाठी अरुण आए और छेड़ भरा कमेंट कर गए कि अपनी उम्र के आधे से भी कम लग रहे हो। सुबह तक व्हाट्स एप पर जन्मदिन की बधाइयां आ गई। 

कल जन्मदिन नहीं था। वह सितम्बर महीने की पच्चीस तारीख को होता है। कल हम घर से निकले और जयपुर शहर को गए थे। प्लान था कि जो कोई बाहर का काम है आज कर लिया जाए। फिर कहीं बाहर नहीं जाएंगे। इसी सिलसिले में शॉपर्स स्टॉप का चक्कर काटा। वहीं मॉल में कुछ तस्वीरें ली थी।

मैं वीडियो बनाना चाहता हूं कि ये सबसे फास्ट माध्यम है। लेकिन हर बार डिजिटल क्रियेटर्स का खयाल आता है और मैं स्थगित कर देता हूं। 

ये बरस भी अच्छा गुज़रा है। ज़रा आंख खोलकर देखूं तो पाता हूं कि मैं उस पीढ़ी से हूं। जो पुराने और नए के बीच ठोकरों में है। न नई हो पा रही और न ही पुरानी।

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