कविताओं से मोहभंग है। फिर भी कविता वह जगह है, जहाँ मन को आश्रय मिलता है। या जैसे घर लौट आए हों। कविता पढ़ने के अपने दुख हैं। उनका कुछ नहीं किया जा सकता। कि आप कविता पढ़ने जाते हैं और हताश होकर लौटते हैं। इसलिए हर दो तीन बरस में देख आता हूं कि युवाओं ने कविता के लोहे को कितना तपाया है। इसी देखने में समय के साखी का अंक ऑर्डर किया था। बहुत बरस बाद मैंने कविताएं पढ़ीं। पढ़कर सुख पाया। कुछ कविताएं परमानंद रहीं। जमुना बीनी की कविता लौटने के इंतज़ार में, प्रतिभा गोटीवाले की सरस्वती पर माल्यार्पण, नेहा नरूका की कुलताबाई, विगाह वैभव की ईश्वर को किसान होना चाहिए, ज्योति रीता की प्रिय विनोदिनी, सौम्य मालवीय की कविता तिरंगायन और पार्वती तिर्की की सोसो बंगला। पार्वती तिर्की की एक कविता चुनना मेरे लिए कठिन था कि सभी कविताएं मैंने कई बार पढ़ीं। सब मन को छूने वाली कविताएं हैं। आवश्यक कविताएं। इस अंक को मैं प्रसन्नता के अतिरेक में पढ़ रहा हूँ। अभी पूरा पढ़ा नहीं है। जो पन्ना खुलता है, उसे दोबारा तिबारा पढ़ने लगता हूँ।
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]