माँ और बेटी खेल रहे थे। मौसम में सीलापन था। बारिश रह-रहकर गिर रही थी। छठे माले की खिड़कियों से देखने पर कुछ हाथ की दूरी पर बादल तैर रहे थे। मैं आदतन ख़यालों में खोया हुआ। कल्पना के सांपों पर सवार था। वे साँप इसलिए थे कि सीधे चलते हुए भी डरावने बल खाते भाग रहे थे।
हज़ार एक किलोमीटर कार में चलने से दिमाग़ में बस जाने वाले हिचकोले यथावत थे और तय था कि दो दिन बाद बाड़मेर लौट जाना है। जैसे केंकड़े सीपियों के खोल में घुसकर ख़ुश हो जाते हैं, ठीक ऐसे ही मेरा रेगिस्तान लौटना होता है। वहाँ लौटने से पहले यहाँ लगातार बारिश को देखना अलग सुख था।
सब जगहों की बारिशें अलग होती हैं। आँखों की बारिशें सबसे अलग होती हैं। कभी ख़ुशी, कभी उदासी, कभी प्रतीक्षा या किसी भी भावबोध में आँखें अलग तरह से बरसती हैं। धरती पर होने वाली बारिशें भी इसी तरह बहुत अलग हैं।
रेगिस्तान की कड़क गर्मी के बाद उमस जब चरम पर पहुंचती है। बादल अचानक बेसब्री से बरसने लगते हैं। जैसे उनको तुरंत लौट जाने की हड़बड़ी हो। सचमुच वे घनघोर बारिश भी करें तो भी घड़ी भर में गायब हो जाते हैं। आकाश खुलकर साफ़ हो जाता है। मिट्टी की गंध बारिश की ताज़ा स्मृति बन जाती है।
बारिशों की तस्वीरें होती हैं। अक्सर तो उनको किसी तस्वीर में पढ़ने के लिए वैसा मन चाहिए होता है, जिस मन से बारिश की तस्वीर ली गई। तस्वीरों में जितनी बारिशें देखी जा सकती हैं। उनसे अधिक बारिशें असल में तस्वीर में छुपी होती हैं।
मैं अपने फ़ोन से तस्वीरें लेता रहता हूँ। लेकिन उन तस्वीरों के लिए मेरे फ़ोन से बाहर कम ही जगह होती है। मैं सोचता हूँ कि हम जो जीवन जी रहे हैं, उसे शेयर करने का क्या लाभ है। इस जगत में प्राणी सूचना ग्राह्य हो चुके हैं। उनके लिए हर तस्वीर या दृश्य एक सूचना भर है। इन सूचनाओं की लिप्सा में अनुभूति के लिए कोई स्थान नहीं है। कि हम अल्पविराम की तरह तस्वीर को अनुभूत करें। हम सूचना की तरह तुरंत आगे न बढ़ जाएँ। बस इसलिए तस्वीरें पोस्ट करने से मन ऊबता जाता है।
लेकिन कुछ भी हो प्रकृति ने जैसा आपको बनाया है। उस पर आप पहरा तो बिठा सकते हैं किंतु उसे मिटा नहीं सकते। मैं भी लिखने और तस्वीरें पोस्ट करने का निषेध स्वयं पर लागू नहीं कर सकता।
ये तस्वीर इसलिए ली कि प्रकृति का धन्यवाद कहना था। हमने इतने बरस इस संसार में देखे कि युवावस्था की त्वचा पर झुर्रियों की सुंदर लताएँ उकेर सके।
मुझे इस तरह से मामूली बातें लिखना पसंद है। ऐसी दैनिक सामान्य बातों को पढ़ना भी प्रिय है। एलेनॉर रूजवेल्ट एक प्रसिद्ध स्तंभ लिखा करती थी। माय डे। वह बाद में साहित्यिक कृति की तरह पसंद किया गया। उन्होंने कहीं लिखा कि यौवन में सुंदरता प्रकृति की सहज देन हो सकती है, परंतु वृद्धावस्था की सुंदरता वर्षों के आत्मिक सौंदर्य से गढ़ी गई एक जीवंत कृति होती है।