समय की बारिशें

माँ और बेटी खेल रहे थे। मौसम में सीलापन था। बारिश रह-रहकर गिर रही थी। छठे माले की खिड़कियों से देखने पर कुछ हाथ की दूरी पर बादल तैर रहे थे। मैं आदतन ख़यालों में खोया हुआ। कल्पना के सांपों पर सवार था। वे साँप इसलिए थे कि सीधे चलते हुए भी डरावने बल खाते भाग रहे थे। 

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