क्या फूल भी किसी फूल की स्मृति में उदास होते हैं? इस बात का ठीक जवाब दे सकने वाला आँखों से ओझल हो चुका था। यहीं-कहीं होने की ख़ुशबू को हाथ बढ़ाकर छुआ नहीं जा सकता था। सब एक दूसरे को छूकर पता कर रहे थे। हर छुअन में एक अतिरिक्त रुलाई दीवारों से टकरा कर दिल को बींधती रही।
मैंने देखा तुमको जीवन से भरा हुआ। प्रसन्नता से तेज़ कदम चलते हुए, चुप बैठे
हुए अचानक उचक कर मुसकुराते हुए, किसी बात पर गंभीर होते हुए
और फिर कहते हुए कि अपना तो क्या ही था। बड़ी मुश्किल से जगह बनाई।
विश्वविद्यालय के तीन नंबर गेट के पास जब हम पहुंचे तो मैंने कहा “वो सामने चाय
की थड़ी और दुकान दिख रही है? हम देर रात को दोनों यहाँ बैठे थे। चुपके से
सिगरेट फूंकने वाले यूनिवर्सिटी के बच्चों की तरह एक कोने में दुबके थे।“
गेट पर सुरक्षा अधिकारी ने पूछा तो दो शब्द बोलते हुए गला भर आया “डॉ जाखड़” उन्होने कहा “प्लीज़” और आगे बढ्ने का इशारा किया। उनके चेहरे पर अफसोस उतर आया था। पहले ही दाएँ मोड़ मुड़ते हुए अगर कार में न होता तो कितना मुश्किल होता एक-एक कदम रखना।
प्रीतिका को देखना, नहीं देख पाना था।
स्त्रियाँ गले लगकर रो रही थी। गले लगने से उपजी रुलाई का उपाय नहीं हो सकता था।
भाई ही उपचार था। इसके सिवा कोई उपचार हो सकता था तो वह रोना ही था। क्या आँसू कुछ
लौटा सकते हैं? क्या उनसे मन का बोझ कम हो सकता है? क्या
वे दुखों का मरहम हैं? उस समय आँसू और कुछ नहीं थे, केवल तुम्हारे लिए उपजी आर्द्र पुकार भर थे।
किसी के जाने से बने खालीपन पर लोग बहुत दिलासे देते हैं। जीवन है, संभल जाता
है। आदत हो जाती है। मन स्वीकार लेता है। इस संसार का यही चलन है। जो आता है, उसे एक
दिन जाना पड़ता है। अच्छा आदमी जल्दी चला जाता है, ये विधाता का लेख है। ऐसे अनगिनत दिलासों
से मन का कुछ नहीं बनता।
न होना एक भारी पत्थर की तरह सीने पर पड़ा रहता है।
सोमवीर, तुमसे बहुत प्यार है। बहुत सारा।
