कितने साये याद करूँ

दसों दिशाओं में आग बरसती है.

रेत के सहरा में उठते हैं धूल और स्मृतियों के बवंडर. सन्नाटा पसर जाता है धुली हुई चादरों की तरह. घड़ी भर की छाँव में याद की पोटली से निकली कुछ हरे रंग की चूड़ियाँ, लू को थोडा सा विराम देती है. एक पीले रंग का ततैया पानी की मटकियों के पास काली मिटटी को खोदता हुआ, गरमी के बारे में शायद नहीं सोचता होगा. पिछले साल उसने दरवाजे के ठीक बीच में गलती से अपना घरोंदा बनाया था या फिर गलत जगह पर दरवाजा बना हुआ था.

जैसे तुम्हें केजुअली याद करता हूं वैसे ही वह दरवाजा भी खुलता और बंद हुआ करता था. जाने किसकी आमद के इंतजार में महीनों से खुला वह दरवाज़ा एक दिन उकता कर अपने आप बंद हो गया. ततैये के घरोंदे से उसके सफ़ेद - पीली लट जैसे दस - बारह बच्चे धूप में गिरे और झुलस कर मर गए. जब ट्रेन तीन नंबर प्लेटफार्म छोड़ने को थी और मैं तुम्हारा हाथ थामे हुए, बस एक और पल की दुआ कर रहा था कि वही दरवाज़ा बहुत दिनों तक खुला रहने के बाद औचक बंद हो गया था.

इन दिनों सिर्फ शराब पीता हूँ.


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