पानी के बह जाने के बाद रेत पर जानवरों के खुरों के निशान बन आये हैं. उन्हीं के साथ चलता हुआ एक छोर पर पहुँच कर बैठ जाता हूँ. सामने एक मैदान है. थोड़ा भूरा थोड़ा हरा. शाम ढलने में वक़्त है. ये विक्रमादित्य का टीला नहीं है, ये किसी प्रेयसी की याद का टीला है. यहाँ से एक काफिला किसी सुंदरी को जबरन लेकर गुजरा होगा. वह कितनी उदास रही होगी कि पूरे रस्ते में वही अहसास पीछे छोड़ गई है. मैं भी अक्सर चला आया करता हूँ. मैं अपने साथ कुछ नहीं लाता. पानी, किताब, सेल फोन जैसी चीजें घर पे छोड़ कर आता हूँ. मेरे साथ कई दिनों के उलझे हुए विचार होते हैं. मैं उनको रेत की सलवटों पर करीने से रखता हूँ.
रेत की एक लहर से आकर कई सारी लहरें मिल रही हैं. इन्हीं में एक ख्याल है साईमन मार्क मोंजेक का, वह उसी साल दुनिया में आया था जिस साल मैंने अपनी आँखें खोली थी. मैं इस समय रेत के आग़ोश में किसी को सोच रहा हूँ और वह होलीवुड की फोरेस्ट लान में बनी अपनी कब्र में दफ़्न है. वह बहुत ख्यात आदमी नहीं था. उसने दो तीन प्रेम और इतनी ही शादियाँ की थी. इसमें भी कुछ ख़ास नहीं था कि उसने कुछ फिल्मे बनाई, निर्देशन किया और स्क्रिप्ट्स लिखी. वह लन्दन में पैदा हुआ बन्किंघम्शायर के लम्बे चौड़े खेतों के बीच में स्कूल के रस्ते को याद रखते हुए पंद्रह साल की उम्र में अपने पिता को खो बैठा. उसे टेलीविजन से प्रेम हो गया था. वह अपने ख़यालों में इसे एक अद्भुत दुनिया मानता था. उसी में जाकर बस गया. वहां से उजड़ा तो अमेरिका चला गया.
मैं ऐसे पात्रों को बहुत पढ़ता और जीता आया हूँ जिन्होंने प्रेम किया, देह का उत्सव मनाया, तूफ़ान में पतंग की तरह आसमां की ऊँचाई को छुआ और सात आठ साल काम करके पैंतीस साल की उम्र से पहले मर गए. कैसी उदासी है मेरे भीतर कि जापान के टोक्यो शहर की एक गली में बाईस साल के नौजवान चार्ट बस्टर सिंगर की मृत्यु को नहीं भूल पाता. जाने क्यों ऐसे ही आम और खास लोगों की जीवनियाँ और आत्मकथाएं ढूढता फिरता हूँ. उन्हें सहेज कर रखता हूँ. रात को जब पीता हूँ तो उन्हें वाइन भी ऑफ़र करता हूँ.
साईमन की मृत्यु अभी दो महीने पहले ही हुई है. उस दिन मुझे ख़बर नहीं हुई. अगले दिन प्रधानमंत्री जी की प्रेस कांफ्रेंस थी तो उस पर लिखने लग गया था फिर कई दिनों तक मुझे ब्रिटनी मर्फी जैसी खूबसूरत महिला की याद नहीं आई. मैंने शराब को भी नहीं चखा. मैं एक कहानी लिखने लगा. कहानी को इम्प्रेशन से बचाने के लिए कहीं घूमने भी नहीं गया. यानि मैंने ब्रिटनी और साईमन से खुद को बचा कर रखा. कल जाने क्यों उन्हें भुला नहीं पाया. सोचता रहा कि जिस लड़की को उसका पिता दो साल की उम्र में छोड़ जाए और उसकी माँ उसके एक इशारे पर जान देने जितना प्यार करते हुए पाले. वह एक दिन फिल्मों की चका चौंध में चहेता नाम बन जाये और दूसरी शादी के बाद अवसाद में चली जाये. कितना तेज कदम सफ़र है ज़िन्दगी का...
पिछले साल दिसंबर में ब्रिटनी मात्र बत्तीस साल की उम्र में मर गई. उसकी मृत्यु के कारण बताये गए थे कि वह बहुत अधिक एनीमिक हो गई थी और हृदयाघात को सहन नहीं कर पाई. मुझे बहुत अफ़सोस होता है कि इस दो साल के विवाहित जीवन में अपनी माँ और पति के साथ रहते हुए भी ब्रिटनी को किस चीज की कमी थी कि उसने कोकीन जैसे पदार्थ का सहारा लिया. हालाँकि अमेरिकी चिकित्सा विभाग इस बात की पुष्टि नहीं करता मगर ये सच है कि उसने अत्यधिक मात्र में नशीले पदार्थों का सेवन किया और दो महीने में ही चालीस पौंड से अधिक वजन खो दिया था.
मुझे पश्चिम की जीवन शैली और उसके जीवन पर प्रभावों का लेश मात्र भी ज्ञान नहीं है. उनकी क्या खूबियाँ और क्या खामियां है नहीं जानता मगर इतना समझ आता है कि भारतीय जीवन शैली मेरे जैसे अवसाद प्रेमी को बचा कर रखने में कामयाब है. अपने रचे गढ़े गए अफसोसों के साथ रहते हुए मुझे कभी इस तरह से जीवन को समाप्त करने का विचार नहीं आया. मैं हर बार ऐसे दौर को जी भर के जीते हुए आगे बढ़ा हूँ. कल भी सोच रहा था कि जिस दुनियां में शादियाँ और प्रेम क्षण भंगुर हैं वहां आखिर ऐसा क्या था कि मर्फी के जाने के बाद साईमन पांच महीने से अधिक जीवित न रह सका. उसने भी ब्रिटनी की तरह अपने जीवन का अंत क्यों कर लिया ? और वह ब्रिटनी की माँ जिसने दूसरी शादी ही नहीं की... अभी भी उस घर में कैसे रहती होगी ? किस ह्रदय से उसने पांच महीने के अंतराल में दो बार इमरजेंसी को फोन कर के बताया कि कोई मरने वाला है और वे सच में चले गए.
तुम भी बिना मिले मत जाना किसी से... मेरे जैसे लोग उनके लिए भी दुआ करते हैं जिनको कभी देखा ही नहीं...