क्रश... क्रश... क्रश.. काश, लोबान की गंध से बचा रहूँ.
आसमां में बादलों के फाहे देखता हूँ और कमरे में अपने वजूद की तरह बिखरी  बिखरी चीजें. म्यूजिक सिस्टम के स्क्रीन पर वेव्ज उठ कर गिर रही है. लोक  संगीत के सुर बज रहे हैं. रात में रीपीट मोड में प्ले किया था. तीन बजे के  बाद शायद दीवारों ने सुना होगा, मुझे नींद आ गई थी. इन दिनों में व्यस्त भी  बहुत हूँ और खुश भी तो याद आता है कि ऐसा ही दस साल पहले भी था. उन सालों  में ज़िन्दगी ने मुझे एक साथ कई वजीफे दे रखे थे. मैं जिधर देखता था  मुहब्बत थी. एक सुबह राजेश चड्ढा ने कहा 'चलो, आपको लैला - मजनूं की मज़ार  दिखाते हैं.'  वो रेत का दरिया ही था, जिसमें से हम गुजर रहे थे. कोई एक सौ  किलोमीटर से भी ज्यादा पाकिस्तान की तरफ चलते रहने के बाद हम गाड़ी से उतर  गए. मेरे कदम जिस तरफ बढ़ रहे थे, उसी तरफ से लोबान की गंध तेज होती जा रही  थी. 
मैंने लैला मजनूं का किस्सा बचपन में सुना था. मेरी स्मृतियों में  मजनूं अरब देशों के रेगिस्तान में भटकते हुए मुहब्बत की फ़रियाद करता था. उस  दिन अचानक मैं उसकी मज़ार के सामने खड़ा था. मुझे नहीं मालूम कि उन दो  मज़ारों का सच क्या है किन्तु वहां से लौटते ही मैं अगली रात की गाड़ी से  चार सौ किलोमीटर दूर जयपुर चला गया. लोबान की गंध अब भी मेरे साथ थी. वहां  मैंने उसको खोया जिससे में डूब कर मुहब्बत करता था. उसे खो देना जरूरी था  फिर चार छः महीने तक शराब पीता रहा. एक दिन सरकार ने मेरा स्थानांतरण रेत  के ही किनारे मेरे अपने घर में कर दिया. यहाँ आते ही सब ठीक लगने लगा लेकिन  कुछ ही दिनों में वही हाल हो गया. याद के तपते मौसम में मुझे लोकगीतों से  राहत हुई. सुना और सुना... बस सुनता गया.  
पिछले  कुछ सालों से 'जिप्सी म्यूजिक' में सबसे मीठी आवाज़ मुझे गफूर खां  मांगणियार की लगती है. वह साल दो हज़ार की एक खिली हुई दोपहर थी. गफूर ने  मेरी ओर देखा और हाथ से इशारा किया. जिसका अर्थ था कि वो मुझे कुछ सुनाना  चाहता है. मैंने उसे रोक कर कहा गफूर आज साज़ रहने दो और मूमल सुना दो. उसने  कहा बिना साज़ के ? हाँ, मैं जानता था कि वह खालिस गायक है इसलिए दिल से गा  ही लेगा. उसने गाया...  
उसी का एक टुकड़ा आपको भी सुनाता हूँ. 
ढोला तुम्हारे देस में मैंने तीन  रतन देखे हैं, एक प्रियतम दूसरी उसकी प्रिया तीसरा कुमकुम के रंग का  नौजवान ऊंट. ओ प्रियतम सावन के महीने की पहली तीज से भी जल्दी घर आना,  तुम्हारी ये प्रिया डरती हुए कहती है जल्दी से घर की ओर मुडो. मूमल, रंग  महल में खड़ी अपने केश सुखा रही है और बियाबान में एक तनहा खड़ा पेड़ दिन दिन  सूखता ही जा रहा है. सांवले रंग की काजल की रेखा की तरह भूरे क्षितिज पर  महल की बुर्जों के पार बिजली चमक रही है.. ओ ढोले की मूमल आओ, चलो तो  तुम्हें मरुधर देस ले चलूँ. मूमल का सिर अखंड नारियल सा गोल है और उसके बाल  विषधर नाग से हैं. ओ ढोले की मूमल आओ, चलो तो तुम्हें मरुधर देस ले  चलूँ... 
