कोई खुशबू उसको लाई होगी या फिर उसको कुछ याद आया होगा कि कल रात चार मेहराब की हवेली के आंगन में एक मुसाफिर तनहा घूम रहा था. ये रात भी कुछ काली थी और कुछ उसके चेहरे पर गहरी उदासी भी पसरी थी. किसके सीने से लगने को तड़पता होगा, किसकी याद के हिस्सों को चुनता होगा, किसके लिए यूं फिरता होगा, किस के लिए मुसाफिर बाद बरसों के उस आँगन में आया होगा ? एक कांपते हुए पत्ते को छू कर बोला हवेली जगा अपने ख़यालों की जन्नत, बुला जवां साजिंदों को, हवा में घोल दे संदूकों में रखे पैरहन की खुशबू, तलवार भोहों से कह दे गिराएँ बिजलियाँ, रख दे उन रुखसारों पे लरज़िश कि मैं शराब पीते पीते थक गया हूँ. आधी रात को उदास आवाज़, छोटी सिसकियाँ और लम्बी चुप्पी को सुनने के बाद, आपके पास अपना कुछ नहीं रह जाता. ऐसे में सोचता हूँ ज़िन्दगी की इस गाड़ी का रूट चार्ट बड़ा वायर्ड है. दो पल को धड़कनें सुनने को आदमी ज़िन्दगी भर नाउम्मीदी को हराने में लगा रहता है. ओ मुल्ला नसरुद्दीन के कमअक्ल गधे आँख खोल कि सामने कहवा का प्याला रखा है. जो शराब थी वो उतर गई, जो ख़याल था वो डूब गया...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]