तुम उसके दुःख को नहीं समझ सकते. मुस्कान और निर्लिप्तता के तालों में कैद उसकी गहन चुप्पी तक नहीं पहुँच सकते. वह सदाबहार खिले फूलों का तिलिस्म है. आग के पायदानों पर बैठी स्वर्ण भस्म है, वह असंभव और अनंत है. उसे समझने की कोशिशें व्यर्थ हैं. वह अपनी आँखों से तुम्हारे रोम रोम से संवाद करना जानती है. जब भी उससे मिलने जाओ दिल का खाली कटोरा लेकर जाना और चुप से उसके पास धर के बैठ जाना. जब वह उठ कर जाने लगे तब तुम कटोरे को समेट कर देह की झोली में रखना और लौट आना. इसे एक बार फिर दोहराना कि स्त्री असीम और अतुलनीय है. वह सात समंदर पार से, चीड़ के पेड़ों से भरे पहाड़ से, गंगा के पानी में पांव डाले हुए, नवाबों के शहर में शाम को ओढ़े हुए या महानगरों की उमस भरी छत पर बैठे हुए अपने एक आंसू से प्याला भर देगी और कभी दुखों के विस्तार को समेट कर अपनी हथेली में छुपा लेगी. तुम दस बीस चेहरे लगाने का हुनर जानते हो और उसे उन सभी चेहरों को सब्र के संदूक में करीने से रखने का फ़न आता है. स्त्री के बारे में अगर और ज्यादा जानोगे तो तुम उससे डरने लगोगे. इसलिए वह तुम्हें जानने नहीं देना चाहती, इसीलिए तुम...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]