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वह एक भयंकर ईश्वर था.

पांच हज़ार साल ईश्वर की उपासना करने के बावजूद ज्ञात देवों ने मनुष्य जाति पर कोई महान उपकार नहीं किया है. सब एक ही बात पर पर अटके हुए हैं कि ईश्वर ने मनुष्य की रचना की है इसलिए उसका आभारी होना चाहिए. उनके पास अभी तक इस बात का जवाब नहीं है कि उस महान रचयिता ने क्रूर हत्यारे और वहशी आदमखोर क्यों रचे हैं ? इसके जवाब में भी एक कुतर्क आता है कि अच्छाई के लिए बुराई को रचना जरुरी है. तो क्या ईश्वर कोई बुकी है जिसने अपने आनंद के लिए मनमर्जी के खेल को फिक्स किया है.

कई दिन पहले एक कहानी पढ़ी थी, "पाल वायला'स लाइफ". देसो सोमोरी की इस कथा का मुख्य पात्र पेशे से चित्रकार है. वह कलाकारों के अक्सर गायब हो जाने वाले आनुवांशिक गुण से भरा हुआ है. वह सही मायनों में मस्तमौला है. एक बार लौट कर आया तो दाहिने हाथ की दो अंगुलियाँ नहीं थी. लोगों के पूछने पर इतना सा कहा - कुछ नहीं होता, ऐसे अधिक हीरोइक लगता है. रंगों और ब्रशों के लिए अभी बहुत कुछ बचा है और मैंने अपना उत्साह अभी नहीं खोया है.

एक दिन पाल को नया काम मिला. एक धनी व्यक्ति ने क्राइस्ट का चित्र बनाने का प्रस्ताव दिया. उसने भविष्य के नायाब और व्यक्तिगत ईश्वर के लिए हर दाम देने का वादा भी किया. पाल ने एक मॉडल खोजा जिसे सलीब पर लटकना था. हाथों और पैरों में कीलें और उनसे बह कर जम चुका गाढ़ा खून, सर पर काँटों का ताज. पाल ने धनी व्यक्ति द्वारा दिए गए सारे पेंगोज उस मॉडल को सौंप दिए. इस चित्र के पूरा होने से पहले ही कुछ ठट्ठेबाज, पाल को चौंकाने की गरज से उसे खोजते हुए उसके पांचवे माले के मकान तक पहुँच गए. उन्होंने जो देखा वह भयानक था. मॉडल कई दिनों तक क्रोस पर लटका रहने से मरणासन्न था.

पुलिस के आने तक मॉडल ने दम तोड़ दिया. धनी व्यक्ति ने कहा कि उसने सिर्फ़ तस्वीर बनाने को कहा था. इस तरह का कृत्य करने के लिए ये चित्रकार ही ज़िम्मेदार है. पाल ने कहा मैं उस ईश्वर की घोर यंत्रणा कैसे व्यक्त करता अगर मैं उसे अपने सामने तड़पते हुए नहीं देखता ? मैंने सारे सौ-सौ पेंगोज के नोट उसके कदमों में रख दिए थे, वहीं तड़पने के लिए, डटे रहने के लिए ताकि मैं निश्चिन्त होकर काम कर सकूँ. सोमोरी की इस कथा के नायक का जीवन बस इतना ही था कि बाकी सारी उम्र उसे जेल में बितानी पड़ी.

इस कहानी में मनुष्य ही ईश्वर है. एक भयंकर ईश्वर. देसो ने अंपनी युवावस्था लन्दन और पेरिस के उस काल में बितायी थी जिसमें मनुष्य ने एक आधुनिक विश्व के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होते हुए देखा था. कबीलाई जीवन और आखेट से मुक्त होकर समाज ने नवीन मानव कलाओं को अंगीकार किया था. उनकी इस कथा में त्रासद जीवन और घोर गुंजलक विचारों वाले पात्र, विद्रोही सत्य के पक्षधर हैं. वहीं हृदयस्पर्शी भाषा में सख्त जीवन की चिंगारिया है. पुलिस कप्तान जब पाल के कमरे में दाखिल होता है तो बनी हुई तस्वीर और मॉडल के बारे में देसो लिखते हैं.

वह एक भयंकर ईश्वर था... मुरझाये व्यक्ति की तीखी नग्नता, उभरती हुई नसों की विभीत्सता, तनी हुई मांसपेशियों के साथ क्रोस पर लटका हुआ. उसके खुले हुए विकृत होठों से सफ़ेद झाग निकलते हुए. जो उसके समूचे चेहरे के चारों और रजत परिवेश बना रहे थे. जैसे आत्मबलिदान की चीत्कार. सुर्ख और भयभीत आँखें किसी स्वर्गिक आश्वासन की ओर टकटकी लगाये हुए थी.


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