आज मैं तुमको जोर्ज़ बालिन्त की एक कहानी सुनाना चाहता था किन्तु जाने क्यों अब मेरा मन नहीं है. मैंने उस कहानी के बारे में अपनी लिखी हुई बीसियों पंक्तियों को ड्राफ्ट में छोड़ दिया है. मौसम में कोई रंगत नहीं है कि कुदरत के फ्रीज़र का दरवाज़ा अभी खुला नहीं है. मेरी अलमारी में अच्छी विस्की की बची हुई एक बोतल बहुत तनहा दीख रही है. नहीं मालूम कि हिना रब्बानी खान इस वक़्त किस देश के दौरे पर है और अमेरिकी सुंदरी कार्ला हिल्स ने उन्नीस सौ बानवे में जो कहा था कि हम दुनिया में शांति लायेंगे और सबको रहने के लिए घर देंगे, उसका क्या हुआ? फिर भी दिन ये ख़ास है इसलिए इस वक़्त एक बेवज़ह की बात सुनो. दीवार की ट्यूबलाईट बदल गयी है सफ़ेद सरल लता में और संवरने की मेज़ का आइना हो गया है एक चमकीला पन्ना. मोरपंखों से बनी हवा खाने की एक पंखी थी वो भी खो गई, पिछले गरम दिनों की एक रात. मेरे सामने रसोई का दरवाज़ा खुला पड़ा है मगर जो चाकू है वह सिर्फ़ छील सकता हैं कच्ची लौकी. और भी नज़र जो आता है सामान, सब नाकामयाब है. कि मेरी दो आँखों से सीने तक के रास्ते में आंसुओं से भरा एक फुग्गा टकराता हुआ चलता ...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]