उस मोड़ पर एक आदमी नई चिलम छांट रहा था. मैंने पीछे मुड़ कर देखा. रास्ता सूना था फिर गाड़ियों की एक कतार मेरी बेखयाली को चीरती हुई गुजरने लगी. मुझे अचरज हुआ कि अभी थोड़ी ही देर पहले मैं कार में बैठा हुआ सिगरेट के बारे में सोच रहा था और अब इस आदमी को देख रहा हूँ. मैंने कई सालों से सिगरेट नहीं पी है. अब भी कोई जरुरत नहीं है. फिर ये क्या खाली हुआ है जिसे धुंए से भरने का मन हो आया है. मैंने उस आदमी के बारे में सोचा कि जब वह चिलम पिएगा तो हर बार उसे और अधिक धुंआ चाहिए होगा. एक दिन वह थक कर लुढ़क जायेगा. उसे समझ नहीं आएगा कि जो चिलम का पावर हाउस था, वो क्या हुआ...
मुझे भी समझ नहीं आ रहा. अचानक चाहा, यही बैठ जाऊं कि मैं बहुत चिलम पी चुका हूँ. फिर देखा दूर तक सड़क खाली थी. नीली जींस और सफ़ेद कुरता पहने हुए खुद को देखा तो उस लड़के की याद आई जो एक शाम चूरू की वन विहार कॉलोनी के मोड़ पर लगे माइलस्टोन पर देर तक बेवजह बैठा रहा. कि उस दिन कोई नहीं था. सब रास्ते शोक मग्न थे. सड़क के किनारे खड़े कीकर के पेड़ों पर सफ़ेद कांटे चमक रहे थे. बुझती हुई शाम में दरख्तों की लंबी छाया घरों की दीवारों को चूम रही थी मगर उस लड़के के पास कोई नहीं था, कोई नहीं...
इस महानगर में आज की शाम आने को है लेकिन सड़कें इतनी वीरान क्यों हैं? मैं आहिस्ता चलना चाहता हूँ. चौपाटी कहलाने वाली जगह के बारे में सोचता हूँ कि वहाँ जाकर रुक जाऊँगा. उसके मोड़ पर एक पेड़ खड़ा है. उस पेड़ के नीचे खड़े हुए पिछली बार सोच रहा था कि शहर कई बार अपने विद्वान नागरिकों की स्मृतियों को बचाए रखने की कोशिशें करते हैं. इस शहर के वास्तुकार विद्याधर जैसा नगर नियोजन कभी नहीं हो पायेगा. लेकिन इस जगह मैं उन्हीं के नाम को हर तरफ पाता हूँ. मैं एक सेंडविच खा सकता हूँ फिर याद आया की बीच में जो समोसे वाला आया था, मैं वहाँ भी तो नहीं रुका.
दो छोटी लड़कियां पैदल चलने वालों के लिए बने रास्ते पर चल रही हैं. उन्होंने बड़ी विनम्रता से चींटियों और मकोड़ों की बाम्बी से रास्ता बदल लिया. इसी सड़क पर आगे मिटटी की मूरतें रखी हैं. सुघड़ मृदा मूरतों में अगर कोई प्राण फूंक दे तो वे दौड़ती हुई सड़क के बीच में चली आएगी. तेज रफ़्तार कारें उनको बचाने के लिए ब्रेक लगायेगी और एक दूसरे के ऊपर चढ जायेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक आहट थी कि थोड़ी ही देर में बेहद शांत शाम टाइम स्क्वायर के आगे की चौड़ी सड़क का रंग गहरा कर देगी.
उसकी छत पर ठण्ड उतर आई है. मैं यहाँ गुंजलक और नाकाम चला जा रहा हूँ. सोचता हूँ कि इस शहर में आखिर किस के लिए आया हूँ ?