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आ कि तेरी जेब में रखूं...

बड़े दिनों से गुनगुनाये जाने लायक बेवजह की बात नहीं लिखी थी. कई साल पहले एक दोस्त साथ थे, वे पहाड़ में अपने घर को चले गए. रेत के शब्दों और पहाड़ की आवाज़ की जुगलबंदी खो गयी. शाम ढले वे अक्सर गुनगुनाया करते "दर्द से पीले पड़े पत्तों की लेकर एक सौगात सुहानी, शाम पुरानी आई है कि याद तुम्हारी आई है..." फिर अचानक रुक जाते और कहते. "केसी आप उदास उदास न लिखा करो, देखो जीवन कितना सुंदर है. मैं आपको देख रहा हूँ और आप..." मैं उनको बीच में टोकता कि "मैं फ्रायड आलू और ग्लास को देख रहा हूँ..." इसके बाद हम दोनों देर तक मुस्कुराते. 

नन्ही प्यारी बच्ची तान्या, आज डबराल अंकल यहाँ होते तो वे इस नयी बेवजह की बात को तुम्हारे लिए गाना जरुर पसंद करते. हालाँकि इसके मीटर और फीट का हिसाब नहीं किया है. जब अपने संगीतकार आयेंगे तब देख लेंगे. फ़िलहाल हेप्पी वाला बर्थडे. 

आ कि तेरी जेब में रखूं 

लफ़्ज़ों की ताज़ा कलियाँ, 
सपनों की आवारा गलियां. 
ओढ़नी के ऊदे बादल, बाँहों की कोमल टहनियां. 

नदियों के गीले किनारे, 
भीगे पेड़ों के सहारे 
सूखे पत्तों का बिछौना, नेह के महके इशारे. 

दर्द का छोटा फ़साना, 
प्रेम का नन्हा ठिकाना 
याद की रंगीन झालर, जीने का कोई बहाना. 

एक सुर्ख़ दिल ये मेरा, 
और सब खुशियों का डेरा 
खुद को ही रख दूं, पूरा का पूरा, पूरा का पूरा 

आ कि तेरी जेब में खुद को ही रखूं दूं, पूरा का पूरा... 

[Happy Birthday Tanya : Dushu, Manu, Abha and Maa]

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