कितने साल हो गए कोई सस्ता सा लतीफा सुनाये हुए और आख़िरी बार कई बरस पहले
दिल्ली के एक ढाबे पर दोस्त को दिया था धक्का. कितना ही वक़्त हो गया दस
बीस लोगों के बीच बैठे हुए कि खो दिए दोस्त और किसी एक झूठी बात के लिए
रोते ही रहे.
तुम लौटा नहीं सकते बरबाद दिनों को
और मैं भूल भी नहीं सकता हूँ उनको.
मुश्किलों के बाद सख्त हो गया है दिल
कहो अब करें भी क्या इसका
कि इसे छूना नहीं चाहता है, कोई संगतराश.
हालाँकि आदमी आया नहीं है दुनिया में
खिलने फूल की तरह
उसे उठानी है आसमान को छूती हुई
मेहराबें ईमान की,
उसे खिलानी है रौशनी इल्म की.
मगर उम्मीद बाकी है, मेरे पास
कि एक नन्हीं लड़की के हाथ में है जादू
चीज़ों को वापस असल शक्ल में लाने का.
हालाँकि कोई भी
लौटा नहीं सकता है, किसी के बरबाद दिनों को.
* * *
[Image courtesy : Satya]
तुम लौटा नहीं सकते बरबाद दिनों को
और मैं भूल भी नहीं सकता हूँ उनको.
मुश्किलों के बाद सख्त हो गया है दिल
कहो अब करें भी क्या इसका
कि इसे छूना नहीं चाहता है, कोई संगतराश.
हालाँकि आदमी आया नहीं है दुनिया में
खिलने फूल की तरह
उसे उठानी है आसमान को छूती हुई
मेहराबें ईमान की,
उसे खिलानी है रौशनी इल्म की.
मगर उम्मीद बाकी है, मेरे पास
कि एक नन्हीं लड़की के हाथ में है जादू
चीज़ों को वापस असल शक्ल में लाने का.
हालाँकि कोई भी
लौटा नहीं सकता है, किसी के बरबाद दिनों को.
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[Image courtesy : Satya]