कुछ बातें मिट्टी से इश्क़, वतन के ख़याल और ईश्वर के बारे में. वह ईश्वर, जो हमारी कैद आत्मा पर रखी हुई काली परछाई मात्र है. बाकी महबूब सबसे हसीन है, वह सदा कमसिन है. बाँहों से फिसलता हुआ, सताता जाता है. हम फिर लौट कर उसी महबूब की गोद में सर रख कर आँखें मूँद लेते हैं.. यानि सब कुछ बेतरतीब है, ओरण के किसी पेड़ की छाँव में अनगढ़ गीत गाते लड़के की तरह
गिरजे का ख़याल आते ही
देख पाता हूँ एक अटारी
और उसके अंदर बंधी हुई घंटी.
तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
तो बेहिसाब ख़यालों की पतंग उड़ती है
दूर दूर तक ईश्वर के खेतों में.
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ईश्वर एक मूर्ख अध्यापक है
अपनी ही भूलों को दुरस्त करने के लिए
डूबा रहता है नरक और स्वर्ग के फरेब में.
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रात की हर घड़ी
मेरे साथ सोये रहते हैं, ईमान और कुफ़्र
तुम्हारी याद आते ही
मैं ईमान को धकेल देना चाहता हूँ, पलंग से नीचे,
मुझे नफ़रत है भौतिक चीज़ों से भी
कि उस वक्त तारों को देखने वाली दूरबीन से
नहीं की जा सकती कल्पना, प्रेम के आकार की.
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उन मुखौटों को
बाद हमारे भी किया जायेगा याद
जो मुरत्तिब को भूल सके.
जिन्होंने अपनी आत्मा से
पुकारा होगा,वतन की मिट्टी को.
[Murattib - arranger, disposer; director]
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[Image courtesy : Lisa and The Devil]