उन दिनों सबसे अधिक चाहतें थी. सब जल्दी बड़े होने के ख्वाब देखते
थे. बूढ़े लोग करते थे दुआ कि ये कुछ और सालों तक बच्चे बने रह सकें. कमसिन उम्र की कल्पनाओं के पंख ज़मीन से बड़े थे. उनको जीने के
लिए नहीं चाहिए थी खाली जगह और वे सामान्य दिनों को बिता सकते थे, महान दिन
की तरह. ये आज की तरह
सिर्फ़ ख़ुद को बचाए रखने की जुगत में लगा जीवन न था, उन दिनों
बड़े हो जाने के लिए समय ख़ुद उकसाता था. लेकिन हम कभी बड़े नहीं होते सिर्फ़ खुरदरे होते जाते हैं. एक बेवजह की बात है, जो कई सारी बातों से मिल कर बनी है.
दरअसल जो नहीं होता,
वही होता है सबसे ख़ूबसूरत
जैसे घर से भाग जाने का ख़याल
जब न हो मालूम कि जाना है कहां.
लम्बी उम्र में कुछ भी अच्छा नहीं होता
ख़ूबसूरत होती है वो रात, जो कहती है, न जाओ अभी.
ख़ूबसूरत होता है दीवार को कहना, देख मेरी आँख में आंसू हैं
और इनको पौंछ न सकेगा कोई
कि उसने जो बख्शी है मुझे, उस ज़िन्दगी का हाथ बड़ा तंग है.
कि जो नहीं होता, वही होता है सबसे ख़ूबसूरत.
दरअसल जो नहीं होता,
वही होता है सबसे ख़ूबसूरत
जैसे घर से भाग जाने का ख़याल
जब न हो मालूम कि जाना है कहां.
लम्बी उम्र में कुछ भी अच्छा नहीं होता
ख़ूबसूरत होती है वो रात, जो कहती है, न जाओ अभी.
ख़ूबसूरत होता है दीवार को कहना, देख मेरी आँख में आंसू हैं
और इनको पौंछ न सकेगा कोई
कि उसने जो बख्शी है मुझे, उस ज़िन्दगी का हाथ बड़ा तंग है.
कि जो नहीं होता, वही होता है सबसे ख़ूबसूरत.
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[Painting image courtesy : Lorna Millar]