रात के बेहूदा ख्वाबों से बच कर सुबह आँख खुलने के बाद जी कहीं लगता ही नहीं. देखता हूँ कि ड्राफ्ट में बहुत सारे शब्दों का जमावड़ा हो गया है. कुछ भी तरतीब से नहीं, सब कुछ बेकार. हर बार यही सोच कर उठ जाता हूँ कि इसे डिस्कार्ड कर दिया जाये. कई बार हम खुद से कनेक्ट नहीं हो पाते हैं. अपना ही लिखा हुआ बेमानी लगता है. आखिर खुद को याद दिलाता हूँ कि ये मेरी अपनी ही डायरी है. इसमें दर्ज़ किया जा सकता है बेकार की बातों को भी... हम कितनी ही बार कर देते हैं खुद की हत्या और वह आत्महत्या नहीं कहलाती. * * * हम देखते हैं बालकनी में आकर कि कौन गुज़रा था अभी गली से. गली, जो सूनी है, बरसों से. * * * एक बच्चा सलेट पर लिखे हुए को मिटा कर फिर से शुरू करता है लिखना. लोग आते जाते रहते हैं,चलती रहती है जिंदगी. * * * खबर थी मुझको कि इस दौर में प्रचलित चीज़ है, धोखा मगर यह पक्की खबर न निकली. कि नायकों ने चुन लिया था कुछ अजनबी औरतों को ख़ुद के लिए और वे कभी साबित न हो सकी अजनबी. * * * दुनिया भर के भरम चुनते हुए हमें लौट आना चाहिए हमारे खुद के पास. * * *
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]