तुम्हें मालूम हो शायद कि प्रेम रेगिस्तान का दीवड़ी भर पानी है. इसके लिए पीछे लौटना मना है कि आप खो देते हैं सफ़र का साहस. जो तपती रेत पर चलते रहते हैं. वे एक दिन सीख जाते हैं. आंसुओं के बादलों के बीच अनेक दर्द से एक इन्द्रधनुष बुनना. इस ज़िंदगी के काँटों के बीच से छनते हुए नूर की छाप हर सुबह जब धरती पर गिरती है उस वक्त छलनी हुआ दिल याद आता है. कि सब लोगों के हिस्से में जो रखा है वह उसी सवाल के जवाब का इंतज़ार है. जिसे महबूब ने अनदेखा कर रखा है. उसने जाने किसलिए नज़रें फेर रखी है कि उसे मालूम ही नहीं इंतज़ार एक उम्र भर का काम होता है. इंतज़ार उम्र के बंधन से परे है. ख़यालों की छाया का नाच यानि एक बेवजह की बात...
मेरी ये फ़िज़ूल की बात
एक दिन लिखी होगी किसी किताब में
कि हर बार बिछड़ते वक़्त
सुबह होने से पहले की घड़ी में शैतान
दोनों हाथों को विशाल परों की तरह हिलाता है
और बहने लगती है जादुई हवा
कि वह लौट रहा होता है, महबूबा से मिल कर.
वह बचाए रखता है दुनिया का भरम
कि हर लड़की अच्छी है
और उसे हक़ है कि कर सके किसी से भी मुहब्बत.
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[Painting The Never ending gossip's image, courtesy : Tamanna Sagar ]