मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है कि ये सब क्या और क्यों लिखता हूँ. इन बेसलीका बेवजह बातों का हासिल क्या है. बस इतना सा मालूम है कि ऐसा लिखने का ख़याल किस वक़्त आता है. जब साँस लेने में होती है तकलीफ़, जब धुंधला हो जाता है ज़िन्दगी का केनवास, जब आती है तुम्हारे खो जाने की याद, जब लगता है कि सब गलत है, सब सही है...
साहस की जरुरत न थी
खो दिया अपना होश उस जगह
फिर ना रही कोई जरुरत.
नदी में फैंक दिए अपने सारे हुक्म
जिस जगह लड़की ने कहा था
ऐसा क्यों लगता है कि
तुम चले गए तो कुछ न बचेगा, मेरे पास.
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लगता है कि कोई आवाज़ दे मुझे भी
कि रुक क्यों गए पापी अभी तुम्हारा काम बाकी है
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भ्रम का सिक्का घूमता ही जाता है
कि आदमी कोल्हू के बैल की तरह
देख लेना चाहता है
दर्द के सिक्के के दूसरी तरफ वाली ख़ुशी
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लोग कहते थे कि ईमान पर चल
न सोच उस कुफ़्र के बारे में
देख मरने के बाद भी कुछ तो साथ चलता है
मैंने मगर बाख़ुशी खोल दिया उसका आखिरी बटन.
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[Image courtesy : Kavita S.]