तुम रखो
अधरों से परे
मीठी नज़र के विपरीत
मगर
जीवन वेणु है
हवा फूंकती है, चहक.
धुन रहे उदासी, तो रहे.
* * *
वहीँ से शुरू होता है
जुलाई का आखिरी सप्ताह
जहाँ तुम छोड़कर जाते हो।
ख़त्म कहाँ होता है, नहीं मालूम।
* * *
अगर मैं कहूँ कि मेरे दोस्त हैं तो ये साफ़ झूठ होगा। ये असल में कुछ ऐसा है कि या तो मैं उसे चाहता हूँ या वो मुझे चाहता है।
ये भी हो सकता है कि हम दोनों एक दूजे को चाहते हों।
वे लोग कौन हैं? वे लोग हर पेशे से, जगह से हर लिंग से हैं। उनमें कुछ न कुछ खूबी है। उस खूबी से एक सम्मोहन जागता है। वह मुझे उनकी ओर धकेलता है। मैं उनके सानिध्य की चाहना से भरा होता हूँ। कला प्रदर्शनी में लगे चित्रों को किसी दोस्त की तरह देखने नहीं जाता, एक चाहने वाले की तरह जाता हूँ। नाट्य प्रदर्शनों में अभिनय कला के रस की बूँदें चखने जाता हूँ। किताबों वालों के पास जादुई शब्दों के सुरूर को होता हूँ। वे मेरे दोस्त नहीं हैं। मैं उनका चाहने वाला हूँ।
एक लड़के के साथ बरसों घूमता रहा। उसमें एक ख़ामोशी थी। वही रसायन मेरी चाहना था। क्या वो मेरा दोस्त था? मुझे ऐसा अब तक नहीं लगता। हम दोनों बेहिसाब सिगरेट पीते। कोई एक दूजे को न देखता। हम सस्ती महंगी शराब पी रहे होते, हम किसी के बारे में बात नहीं करते। हमारी चुप्पी हमारी चाहना थी मगर दोस्ती हरगिज नहीं।
अब भी मैं जहाँ कहीं थोड़ा सा बचा हूँ जो कोई मेरे भीतर कम ज्यादा है, वह बस चाहना है। ये प्रेम ही है इसलिए मित्रता कहना ठीक नहीं।
वैसे जिसे बिना चाहना वाली दोस्ती कहते हैं वो कुछ ज्यादा कोरी सी बोरियत भरी बात नहीं लगती?
* * *
सब कुछ वैसा ही था
सिवा इसके कि लोहे के फ्रेम में
क्ले से चिपकाया हुआ कांच टूट गया।
किलेबंदी में जैसे कोई सुराख़ हुआ
और सारा शहर रिसने लगा खिड़की से।
भय चींटियों की कतार की तरह आने लगा
जबकि पहले भी सुरक्षित क्या था कुछ?
इससे घबरा कर चला आया हूँ
रिसते हुए शहर के खिलाफ
शहर के ही भीतर।
खड़ा हूँ ठीक वैसे
जैसे सूखे हुए दरख्त का तना
कहता हो
जाओ दुनिया देख लिया तुमको।
सड़क फेरती है अपनी पीठ पर अंगुलियाँ
दूकाने उंघती है दिन की चौंध का मरहम करती
तुम मालूम नहीं क्या कर रहे हो?
आज की
ये आखिरी बात तुमको लिखना चाहता हूँ
कि जीटीबी नगर मेट्रो का गेट दिख रहा है किसी चिमनी की तरह।
इस चिमनी से रिसने लगे शहर फिर से
उससे पहले आ जाओ
हालाँकि
प्रेम जीवन की कहानी का एंटी हीरो है
कुछ एक अपवादों को छोड़कर ज्यादातर बदनाम है।
अधरों से परे
मीठी नज़र के विपरीत
मगर
जीवन वेणु है
हवा फूंकती है, चहक.
धुन रहे उदासी, तो रहे.
* * *
वहीँ से शुरू होता है
जुलाई का आखिरी सप्ताह
जहाँ तुम छोड़कर जाते हो।
ख़त्म कहाँ होता है, नहीं मालूम।
* * *
अगर मैं कहूँ कि मेरे दोस्त हैं तो ये साफ़ झूठ होगा। ये असल में कुछ ऐसा है कि या तो मैं उसे चाहता हूँ या वो मुझे चाहता है।
ये भी हो सकता है कि हम दोनों एक दूजे को चाहते हों।
वे लोग कौन हैं? वे लोग हर पेशे से, जगह से हर लिंग से हैं। उनमें कुछ न कुछ खूबी है। उस खूबी से एक सम्मोहन जागता है। वह मुझे उनकी ओर धकेलता है। मैं उनके सानिध्य की चाहना से भरा होता हूँ। कला प्रदर्शनी में लगे चित्रों को किसी दोस्त की तरह देखने नहीं जाता, एक चाहने वाले की तरह जाता हूँ। नाट्य प्रदर्शनों में अभिनय कला के रस की बूँदें चखने जाता हूँ। किताबों वालों के पास जादुई शब्दों के सुरूर को होता हूँ। वे मेरे दोस्त नहीं हैं। मैं उनका चाहने वाला हूँ।
एक लड़के के साथ बरसों घूमता रहा। उसमें एक ख़ामोशी थी। वही रसायन मेरी चाहना था। क्या वो मेरा दोस्त था? मुझे ऐसा अब तक नहीं लगता। हम दोनों बेहिसाब सिगरेट पीते। कोई एक दूजे को न देखता। हम सस्ती महंगी शराब पी रहे होते, हम किसी के बारे में बात नहीं करते। हमारी चुप्पी हमारी चाहना थी मगर दोस्ती हरगिज नहीं।
अब भी मैं जहाँ कहीं थोड़ा सा बचा हूँ जो कोई मेरे भीतर कम ज्यादा है, वह बस चाहना है। ये प्रेम ही है इसलिए मित्रता कहना ठीक नहीं।
वैसे जिसे बिना चाहना वाली दोस्ती कहते हैं वो कुछ ज्यादा कोरी सी बोरियत भरी बात नहीं लगती?
* * *
सब कुछ वैसा ही था
सिवा इसके कि लोहे के फ्रेम में
क्ले से चिपकाया हुआ कांच टूट गया।
किलेबंदी में जैसे कोई सुराख़ हुआ
और सारा शहर रिसने लगा खिड़की से।
भय चींटियों की कतार की तरह आने लगा
जबकि पहले भी सुरक्षित क्या था कुछ?
इससे घबरा कर चला आया हूँ
रिसते हुए शहर के खिलाफ
शहर के ही भीतर।
खड़ा हूँ ठीक वैसे
जैसे सूखे हुए दरख्त का तना
कहता हो
जाओ दुनिया देख लिया तुमको।
सड़क फेरती है अपनी पीठ पर अंगुलियाँ
दूकाने उंघती है दिन की चौंध का मरहम करती
तुम मालूम नहीं क्या कर रहे हो?
आज की
ये आखिरी बात तुमको लिखना चाहता हूँ
कि जीटीबी नगर मेट्रो का गेट दिख रहा है किसी चिमनी की तरह।
इस चिमनी से रिसने लगे शहर फिर से
उससे पहले आ जाओ
हालाँकि
प्रेम जीवन की कहानी का एंटी हीरो है
कुछ एक अपवादों को छोड़कर ज्यादातर बदनाम है।