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Showing posts from November, 2017

नष्ट होती चीज़ों के प्रति

मरम्मतें मुकम्मल नहीं होती कि जो एक बार टूट जाता है, बार-बार टूटता रहता है। मैं भटकता रहा। देहगंध के लिए नहीं वरन अपनी तन्हाई की तलाश में। इस तलाश में मैंने कीकर पाए। कीकर के कांटों से बहुत गहरा प्रेम किया। उनकी चुभन आवरण में छुपने का अवसर नहीं देती। आप दूर से ही दिख जाते हैं, बिंधे हुए। दर्द से भरे। लड़खड़ाते चलते। मुझे ये अच्छा लगता है कि आदमी जैसा है, औरत जैसी है। वैसी रहे और दिखे भी। मुझे उन लोगों से प्रेम न हुआ, जो किसी मजबूरी में रिश्ता ढोते गए। हालांकि जीवन में अगर आप अकेले होते तो भी कष्ट तो ऐसे ही रहते। इसलिए मैंने ख़ुद से कहा- "जीना मगर एज पर जीना। किसी के लिए बचना मत। कि जीवन को जब तक तुम किसी धार पर रखोगे, वह मरने से बचने की जुगत में लगा रहेगा। जिस दिन उसे बचाना चाहोगे, वह तुम्हारी आत्मा को चीरता हुआ नष्ट होने लगेगा।" यही हाल रिश्तों का है। लोग बचाने की पवित्र जुगत में ख़ुद को नष्ट करते जाते हैं। मुझे अब तक केवल ये समझ आया है कि नष्ट होती चीज़ों के प्रति उदासीन रहो। और कोई हल नहीं है।

फूल को चूमकर उड़ जाना

घर से बाहर गए पति की जान अकसर घर में अटकी रहती है। वह लगभग हर काम के बीच घर को याद करता रहता है। अकसर ये भी होता कि वो घर पर अपने अपडेट देने के मामले में फिसड्डी निकलता है। सोचता रहता है पर कह नहीं पाता।  उधर बीवी के पास प्रेम पत्र तैयार रखे होते हैं- "आ गयी हमारी याद" इन चार शब्दों के बाद एक जानलेवा चुप्पी। इस चुप्पी को तोड़ने, बात को आगे बढ़ाने के लिए पति मुंह खोलता है, तो बोल नहीं पाता। वैसे ये कोई नई बात नहीं है। सब पति-पत्नी जानते हैं। सुमेर के फार्म पर पार्टी थी। शाम होने को थी। हनुवंत सा पहाड़ी पर पड़े सुंदर पत्थर चुनने लगे। उन्होंने बहुत सारे पत्थर जमा किए। अपनी प्रिय के लिए सुंदर अनूठे पत्थर चुनते हुए उनकी अंगुलियां मचल-मचल रही थी। उनके साथ नरपत साहब भी लगे थे। एक साफ खुली जगह पर छोटा सा पत्थर उठाया तो चेतावनी सुनाई दी। शायद वाइपर था, हो सकता है कैरेट हो। लेकिन इतना तय था कि अगर एक मीठी दे देते तो जान आफत में पड़ जाती। हनुवंत सा ने अपने चुने पत्थर मुझे दिखाए। कहा कि आप भी इनमें से ले सकते हैं। मैंने कहा- "मैं संजीदा हो गया हूँ। इस तरह पत्थर चुनते हुए ...

अचम्भे की बरत की तरह

स्याही के लिबास में आई नृत्यांगना शैतान की प्रेमिका की निकली। उसके नाच से जो चिंगारी बहकी थी। उसने शैतान के दिल को रुई की तरह जला दिया। शैतान सब बन्धनों से दूर आक के डोडे से उड़ा फूल हो गया। उसे प्रेम, प्रेम और प्रेम सुनाई देने लगा। शैतान ने चाहा कि वह उसे छू सके। वह उसे चूम ले। उसे बाहों में भर ले। अनयास मृत्यु को याद कर रहे व्यक्ति को कभी मृत्यु जिस तरह अपने आगोश में ले लेती है। उसी तरह नृत्यांगना ने अपनी बाहें खोल दी। शैतान एक अचम्भे की बरत की तरह गहराई में उतर गया। जादुई टैंट में फैले पीले उजास में शैतान की प्रेमिका का रंग व्हिस्की जैसा हो गया था। सुनहरा रंग। शैतान अपनी प्रेमिका के रंग पर गिर रही हर स्याह लकीर को चूम कर मिटा देना चाहता था। लेकिन शैतान को अपने पहले के सब प्रेम बेवक़्त याद आये। उसने अपने चाहने वालों से कहा कि इस लम्हे को रोक लो। दूजे सब प्रेम की तरह ये प्रेम कहीं खो न जाये। मित्रों ने तस्वीरें उतार लीं। लेकिन मोहब्बत तो अपने दिल को चाक करना और सीने के कारोबार ही निकला। आज की शाम रेत के वे धोरे दूर रह गए हैं। शैतान की प्रेमिका जाने कहाँ होगी।...

प्रेम करने के ख़याल की ख़ब्त

तुमको इस बात का यकीन न होगा किन्तु ये सच है कि हर व्यक्ति एक ख़ब्त का शिकार होता है। उसी ख़ब्त के साथ जीता है और उसी के साथ मर जाता है। तुम ख़ब्त को सनक समझना या फिर मैडनेस ज्यादा ठीक होगा। मैं अपनी याददाश्त में जितना पीछे जा सकता हूँ, वहाँ से अपने भीतर एक ख़ब्त पाता हूँ। प्रेम करने के ख़याल की ख़ब्त। इसे प्रेम करना न समझना। बस प्रेम करने का ख़याल या विचार ही समझना। इसलिए कि ये दोनों अलग स्थितियां हैं। ये दो पायदान भी नहीं है। कहीं ऐसा न समझने लगो कि पहले ख़याल आएगा फिर प्रेम किया जाएगा या होगा। प्रेम करने का, प्रेम के ख़याल से कोई वास्ता नहीं है। प्रेम एक स्वतः स्फूर्त, सदानीरा, असीम शै है। वह जिसके पास होती है, उसे प्रेम करना नहीं पड़ता। उसका प्रेम उसके आचरण में घुला रहता है। ऐसा व्यक्ति जहाँ कहीं होता है, जिस काम को करता है, वहाँ केवल प्रेम होता है। प्रेम से भरा व्यक्ति, प्रेम करने के ख़याल से भरे व्यक्ति से अधिक ख़ब्ती होता है। इसलिए कि उसे आने और जाने वाले, बने और बिगड़े हुए से कुछ फर्क नहीं पड़ता। जब कोई जीवन से चला जाता है तो वह घर, बगीचे और दफ्तर से प्रेम करता रहता है। जब वह ...

यादों की सुरंगें

मैंने अचानक फोन ऑन किया. मुझे याद आया कि कोई मेसेज बहुत दिनों से पड़ा है. उसे जवाब नहीं दिया. बस कॉल किया. मैंने पूछा- "तुम्हारे पास समय है?" उसने कहा- "आपको ये नहीं पूछना चाहिए. आपके लिए कभी भी..." मुझे लगा कि शायद उसने अपने आस-पास देखा होगा. पल भर में लिए तय किया होगा कि बात करे या बाद में फोन पर बात करने का कह दे. उसने कहा- "आप बहुत अच्छा लिखते हैं" मैंने कहा- "एक ज़रूरी काम से फोन किया है तुमको" उसे ज़रूर अचरज हुआ होगा. उसने कहा भी- "मुझसे ?" मैंने कहा- "हाँ" मैं सोच रहा था कि उसके चेहरे पर मुस्कान आई है. उसे बहुत कुछ भूल गया है. जितनी परेशानियाँ उसे घेरे रही होंगी, उन पर किसी अविश्वसनीय बात ने बम गिरा दिया है. सब दिक्कतें ढहने लगी हैं. उसने कहा- "मुझे लगा कि कहीं बैठ जाना चाहिए तो मैंने यही किया है." मैं चुप रहा. उसने कहा- "हेलो. आप हैं उधर?" "हाँ" "बताइए क्या कहना था?" मैंने कहा- "मुझे बहुत दिनों से लगता है कि मैंने बहुत ...

असल में कुछ नहीं हूँ मैं

पहले लोग दुआ सलाम करते हैं। फिर बात करने लगते हैं। उसके बाद अपना मन बांटते हैं। अपने बारे में सब बता देने के बाद जो उनको अच्छा लगा, वह पढ़कर सुनाते हैं। हज़ार बहाने खोजते हैं फोन पर एंगेज रखने के। उनको सुनते हुए। उनसे बात करते हुए। हम भी अपना मन कह देते हैं। फिर अचानक वे लोग कहीं खो जाते हैं। उनसे पूछो तो कहते हैं कि कोई बात है। तुम न समझोगे। इस तरह अचानक अपनी इच्छा से आये लोग, अचानक खो जाते हैं। अच्छी बात ये है कि अब तक उन्होंने वे बातें शायद सार्वजनिक न की जो हमने उनकी बातों के बहकावे में आकर कह दी थी। उनका शुक्रिया। * * * मैं आपे से बाहर आया समंदर हूँ मैं स्याह जादुई रात हूँ मैं बहुत समय से भूखा शिकारी जीव हूँ मैं श्मशान में चिता की राख में लेटा अघोरी हूँ. अनवरत मंत्र पाठ की तरह संभावनाएं जताता रहूँ अपने बारे में तो भी जिन अंगुलियों में है मेरी अंगुलियां छूने की चाहना, वे छू लेती हैं।   असल में कुछ नहीं हूँ मैं हर कोई अपने स्वप्न/दुस्वप्न को छूता है और जाग जाता है। * * *

ख़यालों के अंडरपास

दो साल पहले उसने कहा- "मानव इज हॉट।" फिर मेरी आँखों में झांकते हुए कहा- "बट मिलिंद इज मिलिंद। ही इज अ माचोमैन..." उसके होठों पर मुस्कान और आंखों में शरारत भरी थी। "अच्छा इस बार मानव कौल दिल्ली आए तो उससे मिलवाना।" मैंने कहा- "मानव मुझे नहीं जानते" "रहने दो। ही इज इन योर फ्रेंडलिस्ट एंड रेस्पोंडिंग टू यू" मैंने देखा कि उसे मेरी बात का यकीन न था। साथ बैठी व्हिस्की पी रही ख़ूबसूरत दोस्त को उदास करना अच्छा न था। इसलिए मैंने कहा- "ठीक है। साल भर बाद उसने कहा- "बुक फेयर में आये हो मिलोगे?" मैंने कहा कि दिल्ली में मेरा फोन नहीं लगता। बैटरी ड्रेन हो जाती है। नेट पुअर होता है इसलिए मैं वहीं मिलूंगा। न मिलूं तो हिन्द युग्म के स्टाल पर पूछना।" उसे अच्छा न लगा। ये दोस्त होने जैसा भी न था कि ऐसे तो कोई भी मिल लेगा। वह नहीं आई। मेरे पास भी मेले में वक़्त न था। अचानक उसका मेसेज आया। "शाबाश। मानव कौल का इंटरव्यू कर रहे हो और बड़ी भीड़ लगा रखी है। बहुत अच्छा।" इस बार मिले तो हम फिर व्हिस्की पी रहे थे...

बस एक बार के लिए

किताबों को सोचना अच्छा है। एक-दो किताब आस पास रहे तो एक अजाने संसार में प्रवेश किया जा सकता है। किताबें ऐसी खिड़कियाँ हैं, जो सबसे सुन्दर संसार में ले जाती हैं.  आप सब किताबें नहीं पढ़ सकते। सबको पढ़ने की ज़रूरत भी नहीं है। आप इस दुनिया मे किताबें पढ़ने नहीं आये हैं। जैसे कोई कुम्हार केवल मृदा पात्र बनाने नहीं आता, लुहार लोहे की चीज़ें बनाने भर को नहीं आता।  हमारे सम्मोहन होते हैं. हम प्यार करते हैं. हम प्यार करते हुए उसी को जीने लगते हैं. किताबें भी एक प्यार हो सकती हैं. जिसमें इस तरह डूब जाएँ कि हमें और कुछ न सूझे. लेकिन ये डूबना समय के किसी हिस्से के लिए हो सकता है. ये निरंतर होना असम्भव है. अगर संभव है तो फिर सचमुच कहीं कुछ गड़बड़ है. कि तुमने अन्य कलाओं, जीवित पौधों, सुन्दर पक्षियों, बहते पानी, ठहरी झीलों और जीवन के अनगिनत अचम्भों को खो दिया है. नृत्य के प्रेम में आकंठ डूबा एक नर्तक अर्धरात्रि को नाचने का मन होने पर नाच सकता है। द्रुत, अविराम और अनंत नृत्य। किन्तु वह बस एक बार के लिए हो सकता है। उसे फिर से लौट आना पड़ता है, उबाऊ, ढीले और बेस्वाद जीवन में। जीवन के र...

हम फिर मिलते हैं

वो लम्हा पीछे छूट जाता है। सदा के लिए। एक स्मृति भर रह जाता है। हम जब कभी फिर से मिलते हैं तब हम वो नहीं होते, जो पिछली बार थे। अगर हम वही पिछले वाले होते तो हमारा मिलना असम्भव था। एक बीत चुकी मुलाक़ात दोबारा नहीं हो सकती। नई मुलाक़ात को ताबीर करने के लिए सबकुछ नया बनाना पड़ता है। हम शायद फिर मिलेंगे लेकिन तुमसे कोई और मिलेगा, मैं किसी और से मिल रहा होऊंगा। मगर इस नएपन के बीज हैं, वे शायद कभी न बदलें। परसों सुबह ब्रेख्त की एक कविता पढ़ रहा था। मुझे लगा कि कई बार तुमसे मिलना चाहिए. मैं तुम्हारे कॉलेज के दरवाजे के सामने की सड़क के पार बस स्टॉप पर बैठा हुआ देख सकता हूँ। तुम मुझे न देखोगी। मैं एक जाती हुई पीठ पर छितराये खुले बालों से मिल लूंगा। तुम मेट्रो स्टेशन पर आ रही होओगी। मैं इस बार फिर अपनी नज़र फेर लूंगा शायद कि मुझे यकीन न आएगा। तुम इतनी सुंदर कैसे हो जाती हो हर बार। मैं तुम्हारे दफ़्तर को जाती सीढ़ियों पर सामने से आता हुआ टकरा जाना चाहूँगा। ये मगर सम्भव न होगा कि उस वक़्त सब दफ़्तर जा रहे होंगे, दफ़्तर से आ कौन सकता है। इसलिए लन्च में दफ़्तर के निचले तल के पिछवाड़े में केंटीन से र...

कि कहां तक

चाय का मग खिड़की के बीच रखा रहता। चिड़िया बालकनी में बंधे तार पर बैठी रहती। मैं जब भी चाय बनाकर लाता। मग को खिड़की में रखता और चिड़िया को खोजने लगता। कभी-कभी चिड़िया आ जाती थी और कभी देर तक सूनापन बना रहता। फिर मैं सोचता कि क्या एक चाय और बना लूँ? मैं बार-बार बाहर झांकता कि क्या चिड़िया लौट आई है। बिस्तर पर अधलेटा, कुर्सी में धंसा हुआ होता कि अचानक यकीन आता। उसे आना ही चाहिए कि कहानी में गोली चलने से पहले ही सब मुर्गाबियाँ उड़ जाती थी। वह तो एक चिड़िया जो अपनी मर्ज़ी से बालकनी में आती है। मैं फिर कहानी के पन्ने को देखने लगता और याद करता कि कहां तक पढ़ा था... * * * गुलाब के फूल का गलमा बाहर था. एक बकरी आई और इसके फूलों और पत्तियों को साफ़ कर गयी. तना और शाखाएं बची रह गयी. बस एक गमला था और गमले में सूनी शाखाएं. मैंने कहा कि कोई बात नहीं. अगर ज़िन्दगी बची है तो फिर से हरिया जाएगी. कुछ रोज़ बाद एक नन्हीं सी कोंपल का फूटना दिखाई दिया. दिल ने आराम लिया. जरा आहिस्ता से धड़का. फिर कुछ रोज़ बाद पत्तियां आ गयीं. फिर ये वाला फूल भी आ गया. दुःख अकसर सबकुछ बुहार कर ले जाता है. मगर हम बचे रहे...

बहुत दिनों बाद अनायास

अंगुलियों के बीच कत्थे का एक गोल निशान रह गया है जैसे एक बार रह गयी थी, उसके माथे की बिंदी। * * * बहुत दिनों बाद अनायास उसके न होने की याद आने पर फिर से महकने लगती हैं अंगुलियां। कितनी ही बातें ख़ुशबू की तरह पीछे छूट जाती है। जैसे अंगुलियों में छूटी स्याही की ख़ुशबू धुलने के बहुत दिनों बाद भी आती है। जैसे कोई फूल जो केवल देखा था उसकी तस्वीर के साथ, यहां भी महकने लगता है। उसके होने को उसके होने की ज़रूरत नहीं है। ये बस मेरा लालच है कि वो यहाँ हो तो बाहों में भर लूँ। * * * रहने दो। शाम कब की ढल चुकी है। मजदूरों को अब तक उनकी गाड़ियों ने छोड़ दिया होगा, घर जाती पगडंडियों पर। कोई हल्का उजास, कोई चहल, कोई ठिठकी नज़र वे देख चुके होंगे। मैं भी एक अच्छा मजदूर होना चाहता रहा हूँ। मुझे भी सलीके से घर पहुंचना अच्छा लगता है। लेकिन मैं उससे बंध नहीं पाता। अकसर बीच मे कहीं भी ठहर जाता हूँ। इसलिए रहने दो। किसी की चिंता न करो। प्रेम से बड़ी बहुत सी तकलीफें हैं। वे उनको सबकुछ भुला देंगी। ये भी कि वे इंतज़ार कर रहे थे। ये भी कि उनको कोई शिकायत करनी थी। क्या तुम्हारे पास थोड़ी सी शराब और थ...