घर से बाहर गए पति की जान अकसर घर में अटकी रहती है। वह लगभग हर काम के बीच घर को याद करता रहता है। अकसर ये भी होता कि वो घर पर अपने अपडेट देने के मामले में फिसड्डी निकलता है। सोचता रहता है पर कह नहीं पाता।
उधर बीवी के पास प्रेम पत्र तैयार रखे होते हैं- "आ गयी हमारी याद" इन चार शब्दों के बाद एक जानलेवा चुप्पी। इस चुप्पी को तोड़ने, बात को आगे बढ़ाने के लिए पति मुंह खोलता है, तो बोल नहीं पाता। वैसे ये कोई नई बात नहीं है। सब पति-पत्नी जानते हैं।
सुमेर के फार्म पर पार्टी थी। शाम होने को थी। हनुवंत सा पहाड़ी पर पड़े सुंदर पत्थर चुनने लगे। उन्होंने बहुत सारे पत्थर जमा किए। अपनी प्रिय के लिए सुंदर अनूठे पत्थर चुनते हुए उनकी अंगुलियां मचल-मचल रही थी। उनके साथ नरपत साहब भी लगे थे। एक साफ खुली जगह पर छोटा सा पत्थर उठाया तो चेतावनी सुनाई दी। शायद वाइपर था, हो सकता है कैरेट हो। लेकिन इतना तय था कि अगर एक मीठी दे देते तो जान आफत में पड़ जाती।
हनुवंत सा ने अपने चुने पत्थर मुझे दिखाए। कहा कि आप भी इनमें से ले सकते हैं। मैंने कहा- "मैं संजीदा हो गया हूँ। इस तरह पत्थर चुनते हुए आपने तो जान दांव पर लगा दी थी"
सब पत्नियों को समझना चाहिए कि बाहर गए पति के पास फोन पर अपडेट देने के सिवा भी ज़रूरी काम होते हैं। वह आपको भूलता नहीं है। वह आपको रिझाने, ख़ुश करने, अपने प्रेमपाश में बांधे रखने के लिए जान के ख़तरे उठाता जाता है।
मैं भी अगर किसी की आंखों में डूब जाता हूँ तो याद रखता हूँ कि वापस घर जाना है कि नहीं जाना। जब मैं नौवीं कक्षा में था। तब मेरे एक बड़े भाईसाहब ने मुझे प्यार से पास बिठाकर समझाया था। एक भँवरे की तरह फूल को चूमकर उड़ जाओ। फूल पर चिपक कर बैठे मत रहो।
मैं उन पर हंसता रहता था मगर बात उन्होंने शायद अपने गहन अनुभव से कही थी।