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बहुत दिनों बाद अनायास

अंगुलियों के बीच
कत्थे का एक गोल निशान रह गया है
जैसे एक बार रह गयी थी, उसके माथे की बिंदी।
* * *

बहुत दिनों बाद अनायास उसके न होने की याद आने पर फिर से महकने लगती हैं अंगुलियां। कितनी ही बातें ख़ुशबू की तरह पीछे छूट जाती है। जैसे अंगुलियों में छूटी स्याही की ख़ुशबू धुलने के बहुत दिनों बाद भी आती है। जैसे कोई फूल जो केवल देखा था उसकी तस्वीर के साथ, यहां भी महकने लगता है।

उसके होने को उसके होने की ज़रूरत नहीं है। ये बस मेरा लालच है कि वो यहाँ हो तो बाहों में भर लूँ।
* * *

रहने दो।

शाम कब की ढल चुकी है। मजदूरों को अब तक उनकी गाड़ियों ने छोड़ दिया होगा, घर जाती पगडंडियों पर। कोई हल्का उजास, कोई चहल, कोई ठिठकी नज़र वे देख चुके होंगे। मैं भी एक अच्छा मजदूर होना चाहता रहा हूँ। मुझे भी सलीके से घर पहुंचना अच्छा लगता है। लेकिन मैं उससे बंध नहीं पाता। अकसर बीच मे कहीं भी ठहर जाता हूँ। इसलिए रहने दो।

किसी की चिंता न करो। प्रेम से बड़ी बहुत सी तकलीफें हैं। वे उनको सबकुछ भुला देंगी। ये भी कि वे इंतज़ार कर रहे थे। ये भी कि उनको कोई शिकायत करनी थी। क्या तुम्हारे पास थोड़ी सी शराब और थोड़ी जगह है? इतनी सी कि मैं अपने पांव लम्बे कर सकूं।

नहीं है तो कोई बात नहीं। रहने दो।
* * *

सुख, अनचीन्हा रह जाने से अकसर कम-कम लगता है।


[Man Painting his boat ; Georges Seurat ]

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