"ज़िंदगी की हर बात कितनी भी बेवजह हो, वह कविता से अधिक सुंदर होती है"
बातें बेवजह के साथ आगे बढ़ते हर कदम पर पाया कि बेवजह की इन सारी बातों की जड़ है उन्मुक्त प्रेम!
हालांकि अन्य छुटपुट भाव पत्तों की तरह अटके पड़े हैं।
'उसके नाम के पीछे छिपा लेता हूँ मैं अपना अकेलापन, कि इस दुनिया में कोई समझ नहीं सकता भरे पूरे घर में भी कोई हो सकता है अकेला' भरे पूरे घर में रहते हुए भी किसी से प्रेम करने की कभी कोई वजह नहीं बता सकता इसलिए प्रेम में पगी ये बातें बेवजह की ही हुई।
ढेर सारी ऐषणाओं से भरा प्रेम। अपने मन की उर्वर जमीन पर प्रेमिका के देहरुपी पेड़ से लिपटे बैठे रहना,
उसकी छाँव की ठंडक पाना, उसे अंक में भर उसके फूलों की महक को महसूस करना, चाहना बढ़ने पर फल तोड़ कर खा लेना ये उन्मुक्त कामनाएँ इस जमीन पर खरपतवारों की तरह जहाँ तहाँ ढिठाई से सिर उठाती रही हैं।
प्रेम में देह को नकार कर रुह रुह की यहाँ पुकार नहीं है। उसमें बिंधकर मन को छलनी करने का कोई भाव नहीं, ग्लानि नहीं। शैतान का चोला ओढ़ समाज की बँधी बँधाई लीक को तोड़ कविताओं के नायक द्वारा बेधड़क, बेलाग, बिंदास और बेहिचक तरीके से अपनी ऐषणाओं के उठते गुबार के अनुरूप प्रेम को करने और पाने की बेहद ईमानदार और बेख़ौफ़ अभिव्यक्ति ही इन कविताओं का सौंदर्य है। जिनमें चार चाँद लगाते हैं उन्हें व्यक्त करने के सर्वथा गहन अर्थ उधेड़ते रुपक और नये अर्थ खोलती सुघड़ भाषा।
'माॅनिटर लिज़ार्ड
उठाती है सर रेत के बयाबान में
जीभ से टटोलती है मौसम की नब्ज़
और खो जाती है धूसरे काँटों के बीच।
मन में कोई बात आती है
तुम्हारे बारे में और बुझ जाती है चुपचाप।
वीराना लौट आता है,अपने ठिकाने पर।'
बातें बेवजह पढ़ते हुए माइकल एंजेलो का डेविड फ्लोरेंस आँखों के सामने बार-बार आ खड़ा होता है।संगेमरमर का वो निर्वसन बुत, जिसके सामने खड़े होने पर वो नग्न देह नहीं रह जाती अपितु अपनी सूक्ष्म बारीकियों और अत्यंत सुघड़ता के साथ ढला संगेमरमर का एक अप्रतिम कलात्मक स्कल्पचर भर रह जाता है, जिसे देख जुगुप्सा नहीं उपजती न ही वासना का ज्वार। न हिकारत से आँखें टेढ़ी होती हैं, न रोष से रक्तिम, न ही शर्म से रास्ता बदलती है बल्कि एक सुगठित सौंदर्य अपनी संपूर्ण समग्रता में अपने में जकड़ लेता है। कुछ वैसे ही यहाँ भी कविताओं की भावाव्यक्ति अपनी निरावृत देह के साथ सामने आती है।
ज़िंदगी की मेज़ पर रखी कटोरी में कुछ ही बचे थे दाने उम्र के और अचानक किसी ने थपथपाई पीठ थोड़ा उधर सरको, मैं भी बैठूँ तुम्हारे पास।'और वो पूरा का पूरा सरक गया मानो इसी इंतज़ार में बैठा हुआ था।
गोया कोई शैतान सवार हुआ उस पर जो इंसान के भीतर दुबका रहता है। मौका मिलते ही घात लगाने को तैयार। वो शैतानियत जिसे हर आम इंसान बलपूर्वक नकारता रहता है, किंतु यहाँ उससे बच निकलने के कोई इंतजाम नहीं है, बस तनकर दिलेरी से उसकी आँख में आँख डालना ही अभीष्ट है।
'चाकू के लिए ब्रेड को ईजाद करना,सुंदर बिस्तर के लिए औरत को लाना, चूमने के लिए प्रेम करना ये शैतान की चाहनाएँ हैं, बताते हुए अपने को सही ठहरा शैतान का ये कहना कि किसी को चाहना और पत्तागोभी की तरह बंद पड़े रहना, ये एक मुर्दा आदमी की ख्वाहिश है।
ये भी कोई एक बार की बात नहीं है- 'एक ही धोखा खाता है बार-बार बेहया बेगैरत बेअक्ल,आख़िर इस दिल को क्या कहिए!' यूँ ही तो नहीं कहा जाता। समाज के नियमों से बंधा इंसान शैतान के पंजे में जकड़ा छटपटाता है 'काश मोहब्बत लोक गीतों सी अनगढ़ न होकर घरानों के बड़े ख़याल की बंदिशें होती, जिन्हें नियम से सीखा जा सकता।' लेकिन शैतान मन का इससे क्या वास्ता?वो कहता फिरता है 'लंबी उम्र में कुछ भी अच्छा नहीं होता ख़ूबसूरत होती है वो रात जो कहती हैं न जाओ अभी'
कितने बदन कितने अवसर कितनी जगहें थीं।
शैतान को इनमें से कुछ याद नहीं
सिवा इसके कि उसने कहा था सब पूछ कर करोगे?'
प्रेम का वो उन्माद जिसके साथ हर बार आमजन लुका छिपी खेलते हैं, वो बेवजह बात की तरह पीठ पर जोर से धौल मारती रहती है। 'लोग कहते थे कि ईमान पर चल, न सोच उस कुफ्र के बारे में, देख मरने के बाद भी कुछ तो साथ चलता है,'लेकिन वो कहाँ मानता है कि 'मैंने मगर बाखुशी खोल दिया उसका आख़िरी बटन' और कर लेता है मनमानी यह कहता हुआ कि 'मुझे जंगली खरगोशों से प्यार है कि उनको जब नहीं होना होता बाँहों में वे मचलते हैं भाग जाने को,जंगली खरगोश तुम्हारे जैसे हैं।'
प्रेम में आकंठ गारत शैतान को भी शायद ये याद न हो कि उसने किस-किस को ये कहा होगा कि वो तो हर बार प्रेम कर बैठता था 'मुझे बहुत सी लड़कियां बेइंतहा पसंद थी,आज उनके नाम की याद भर बाक़ी है।'
प्रेम के उबाल को अपनी तरह जी लेने के बाद पसरे ठंडेपन में ये भी उसने सोचा है कि 'लोगों ने बेवजह और बहुत सारा सोचा है ख़ूबसूरत औरतों के बारे में मगर उन्होंने कभी सुना नहीं गौर से कि ख़ूबसूरत औरतें लोकगीत का आगाज़ हैं और आगे के सारे मिसरे उनके ख़ूबसूरत दुःख।' ये जानते हुए भी कि 'पितामह ने खेतों में अन्न उगाया,पिताजी ने बोई अक्षरों की फसलें मगर शैतान पड़ा रहा प्रेमिका के प्यार में।' ऐसे कि अगर उसे मालूम होता,या उसे मालूम हो जाए या कभी न हो सके उसे मालूम।
शैतान को कोई फर्क नहीं पड़ता, वह बस खोया रहता है उसकी याद में' यह बुदबुदाता हुआ कि 'मुझे माफ़ कर दो इससे सरल रास्ता नहीं था तुम्हारे साथ होने का इसलिए तुमसे प्रेम कर बैठा।' 'उसने जकड़ लिया बाहुपाश में चूमा बेहतर उधेड़ दी बखिया उदासियों की फिर मुस्कुरा कर बोला-मैंने सुना है अवसर एक बार ही आता है!' उन्माद यही नहीं रुकता तो अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बेलाग लपेट सपाट सतर में कहता है 'हवस पर प्रेम का वर्क अच्छा नहीं होता इससे दोनों का लुत्फ़ मर जाता है'
प्रेम उसे पूरा का पूरा वांछनीय था प्रेमिका भी, उसे उसकी देह से कभी इंकार न था कि उसी के साथ ही तो वो उसके पास आती थी, तसव्वुर में भी। प्रेमिका लाख कहे 'जब तुम्हें ज़रूरत हो प्यार की तब याद करना मेरी बात कि प्रेम रुह से किया जाता है, देह नाशवान है। तब वो मन में सोचता कि 'क्या फोड़ लूँ ये रोती हुई आँखें, मगर कहता नहीं था' शैतान तो अंदर था बाहर तो वो इंसान के चोले में ही था आख़िर।
जब पास नहीं होती थी प्रेमिका तब उसकी याद को प्रेम में पड़ा-पड़ा वो किन्हीं आयतों की तरह दोहराता रहता है कि 'वहाँ ज़रूर रखी होती है एक गहरी साँस,जहाँ रखा है तुम्हारे नाम का पहला अक्षर!' या 'आह कितनी उम्मीदें हैं एक तुम्हारे नाम में, तुम हो कहीं? जी चाहता है आख़िरी अच्छे आदमी से बात की जाए।' तब उस जगह पर हम उस प्रेमी को देख पाते हैं जहाँ पर होने को, वो अपनी जिद में लगातार नकारता रहता है।
उसकी वो घुटी हुई आवाजें कि 'नहीं दिखाई देगा कोई अक्स आता हुआ दीवार के इस ओर, दुनिया से डरे हुए छुपकर हम करते रहेंगें इंतज़ार। हम बने ही इंतज़ार के लिए हैं।' 'जीवन की तमाम जटिलताओं में जो चुना जा सकता था आसानी से, वह था सिर्फ तुम्हारा नाम। बाद इसके आसान हो गया ये जीवन कि अब न मरना है न ही कोई जीना।' तब लगता है ये शैतान ही है या अपनी ऐन्द्रिक इच्छाओं के ज्वार को पूरी ऊर्जा से बह जाने देने वाला कोई अबूझ इंसान! कि ऐसी कोमल कामनाएँ तो शैतान मन की उपज नहीं हो सकती।
मानो जैसे सुन ली शैतान ने मन में उठी ये बात और लगा देने चुनौती 'और सोचो उसके बारे में, जिसके बारे में मैं बेवजह की बातें करता हूँ, और सोचो कहाँ से आती है इतनी हिम्मत अपना दिल दुखाने की!' हैरत में पड़े हम सोचते रहते हैं ये तमाम बातें जो उसने कहीं, होशोहवास में कहीं या वो कल्पनाओं में गोता लगाकर मोती की तरह निकाली गईं? ये सोच निरंतर एक छलावा बुनता है कि कब वो शैतान का चोला ओढ़ लेता है कब उसे उठा फेंकता है।
'उदास ही सही मगर चुप बैठे हुए भेजते हैं कुछ कोसने ख़ुद को, तुम न रहो तो ज़रूरी नहीं कि न रहे कोई काम बाक़ी।' इस उलाहने के साथ अपने रंग में आते हुए कहना 'स्याह चादर के नीचे,नीम नशे में तन्हा बेक़रार, बेहिस और बेमज़ा, मैं निष्कासित करता हूँ तुमको आज की रात!' निराश प्रेमी की छवि में देवदास को तलाशते लोग यहाँ बेतरहा चौंक उठेंगें। कथ्य के ये धक्के,धकेलते हुए एक अलग दुनिया में ले जाते हैं।प्रेम के उबड़ खाबड़ रास्ते पर चलते इस राहगीर के लिए सुख 'मुसाफिर की दीवड़ी के पानी की तरह था जो उड़ता ही रहा,दुख मोजड़ी में लगे काँटों की तरह चुभते ही रहे।'
विरह की आग में अंगार की तरह सुलगकर पूछना 'पता नहीं किसलिए आते हैं दिन, रात बनी है किसलिए,
काश एक तुम न हो तो सवाल भी न रहे' या कल रात तुम्हें शुभ रात कहने के बहुत बाद तक नींद नहीं आई। मैं सो सकता था अगर मैंने ईमान की किताबें पढ़ी होती, मुझे किसी कुफ्र का ख़याल आता मैं सोचता किसी सजा के बारे में और रद्द कर देता तुम्हें याद करना।' लेकिन इन बातों का नायक तो किसी और ही मिट्टी का बना है। 'छू नहीं सकते चूम नहीं सकते कुछ नहीं हो सकता हमारा, बस रुह के प्यार की बातें करते ख़ुद को बहलाते हुए हर रात ख़त्म हो जाता हूँ' उन्मादी आवेगों के अतिरेक से भरा, अपने उद्गारों से झंझोड़ता ये नायक अब तक कविताओं में कहाँ लुका हुआ था?
'क्या कुछ नहीं कर सकता स्वर्ग से निष्कासित शैतान! प्रेम में शैतान कितना शैतान बचा रहता है ये केवल शैतान की प्रेमिका के अधखुले होंठ जानते हैं।' इस सबमें एक दिन बीत जाता है तब सोने से पहले शैतान सोचता है यूँ तो कितनी ही बार कुछ याद नहीं आता, मगर कभी-कभी एक नाम कर जाता है कितना तन्हा।' उस क्षण शैतान के साथ चुपके से हम भी उस तन्हाई का हिस्सा हो जाते हैं।
'एक खाली बेंच देखकर उसने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया। इस बरस दुनिया वो नहीं रही। मैंने कहा अच्छा हुआ वह दुनिया हमारे मन की थी भी नहीं। ऐसी ही बेवजह की बातें सोचता हुआ मैं सो गया। असल बात बस इतनी सी थी कि उसने कल फिर कहा था इस ज़िंदगी में एक बार मुझसे ज़रूर मिलना।'
तब प्रत्युत्तर में कविताओं के नायक का कहना कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।
मैं तुम तक नहीं आऊँगा।मैं तुमको आवाज़ नहीं दूँगा।मैं एक जुआरी हूँ,
जो तुम्हारी चाल का इंतज़ार करेगा।
तुम आगे होकर चलना।'
किताब का ये अंतिम कथ्य ठीक उसी तरह अवाक छोड़ देता है जैसे पहली नज़र पड़ते ही डेविड अपने समूचे सौष्ठव के साथ स्तब्ध कर देता है।
यही कुल जमा सार है।
बातें बेवजह पर इतनी बातें कर लेने के बाद क्या आगे उपसंहार कहने की कोई वजह बाक़ी रह जाती है?बाद बाक़ी तो मर्ज़ी है आपकी,
आख़िर मन है आपका!
#संझा
[रूपाली नागर संझा - ऑनलाइन डेटिंग अप्रॉक्स 25:35 (उपन्यास), इस पार मैं (कविता संग्रह), पंखों वाली लड़की की उड़ान, दिल की खिड़की में टंगा तुर्की (यात्रा वृतांत)]