शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।
सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।
व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।
यही शैतान का प्राणतत्व है।
जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।
शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्यों की थी।
उनकी कथाओं के अनुसार शैतान एक देवदूत था। सुंदर, सुकुमार और इच्छाओं से भरा हुआ। अंततः उसे कुरूप, विशालकाय और नाश करने की शक्तियों वाला बना दिया गया।
मेरी कविताओं का शैतान निषेध का उल्लंघन करता हुआ, चुप जी रहा प्राणी है। वह प्रेम करता है, कहता नहीं। वह साथ चाहता है, रोकता नहीं। वह इसी क्षण में जीता है, उसके पास उम्र भर का वादा नहीं है।
वह हताश होता है, उदासी से घिरता है, अकेलेपन में जीता है। शैतान की प्रेमिका का सच्चा झूठा ज़रा सा साथ, उसकी बरसों लंबी अनगिनत उदासियों को दूर कर देता है।
उस समय वह मुस्कुराता है। उसके चेहरे पर किसी आला व्हिस्की से उपजी शांति पसरी होती है। उसके बाहों में पड़ी शैतान की प्रेमिका कोई अजनबी स्त्री नहीं होती, वह उसी स्वर्ग की अप्सरा होती है, जिसकी कल्पना हर व्यक्ति करता है। हर व्यक्ति यह नहीं जानता कि कल्पना से अधिक सुंदर जीवन होता है। शैतान जानता है।
शैतान के बारे में ऐसी फौरी बातों के सिवा पढ़ने को सबकुछ बचा हुआ है।