तुम बहुत सेफ खेले। ये पढ़कर बहुत देर मुस्कुराता रहा। दो दिन बाद लगा कि ये बस मुस्कुराने की बात नहीं थी। तीन दिन बाद याद आया कि रेल में यात्रा के समय जो नेटवर्क डिस्कनेक्ट होता है, वह कभी कभी बहुत सारी नासमझी छोड़ जाता है। रेल तुम्हारे पास ठीक मोबाइल नेटवर्क कब होगा? कि जो किसी को बेरुखी लगे, वह किसी को इंतज़ार में होना लगता रहे। कुछ भी सेफ नहीं है। शुक्रिया। *** एक रेलगाड़ी रेगिस्तान को चीरती हुई चलती है। पहाड़ की उपत्यका में जाकर ठहर जाती है। कभी पहाड़ नहीं जा पाती। ऐसे ही बहुत कुछ है।
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]