Skip to main content

अलीजा की उनींदी आंख से गिरा लम्हा - दो

सपने कितने अच्छे होते हैं न? पहाड़ की तलहटी, रेगिस्तान का कोई कोना या समंदर के किसी किनारे नीम रोशनी में एक दूजे के साथ होना और फिर वह प्यार करना, जिसे सोच कर जिए जाते रहे कि काश ऐसा हो। 

हालांकि हम ऐसी ही जगह पर थे। ये अचंभा था। किसने सोचा था? चार पांच बरस पहले की दौड़भाग भरी मुलाकात के बाद, ये क्षण सचमुच आएगा। 

हम दूर रहते हुए जितना कुछ सोचते थे, वैसा कुछ नहीं हो रहा था। हम मिलकर गले लगकर चुप बैठ गए थे। जैसे किसी बच्चे को उसके सपनों के संसार में बिठाकर कह दिया जाए, जल्दी करना हमें वापस जाना है। 

कुछ नहीं सूझ रहा था। न तो कोई गहरे बोसे याद आ रहे थे। न हमने एक दूजे को बाहों में भरकर स्क्वीज किया। हालांकि हम ऐसी बहुत बातें करते थे। 

उसने अपनी तर्जनी से मेरी बाईं हथेली पर कुछ लिखा। मैंने पूछा क्या? 

उसने नज़रें नहीं उठाई। मैं भी खिड़की के कांच के पार धुंधले साए सोचने लगा। अचानक उसने कहा "लिखने से सचमुच आराम आता है?" 

मैंने कहा "पता नहीं" 

वह कहती है "मेरे पिताजी डायरी लिखते थे। वे देर रात को जब भी जागते डायरी लिखने बैठ जाते थे।" 

मैंने कहा "हर कोई अपना थोड़ा सा हिसाब रखना चाहता है" 

"ये हिसाब वाली डायरी नहीं थी। ये रिश्तों और एहसासों की डायरी थी" ऐसा कहते हुए उसने मेरी बांह को अपनी बांह से बांध लिया।

मैंने कहा "रिश्ते भी हिसाब ही हैं"

"माने?"

मैं कहा "जाने दो। हम बाद में बात करेंगे" 

मैं उठकर पन्नी के बीच फिल्टर और तंबाकू रखने लगा। उसने मेरी डायरी को अधबीच से खोला। मुझे देखकर मुस्कुराई और पढ़ने लगी। 

"दिल की दीवारें भी होती है। दिल के कोने और खाने भी होते हैं। वरना तुम कब कर नसों में बहकर खत्म हो चुके होते। वह जो रोना आता है, जो खुशी होती है। वह जो किसी क्षण अचानक उछल पड़ता है। वह जो अचानक रुक जाता है। जो कभी अगली धड़कन भूल जाता है। न तो पागल है, न वह आवारा है। वह तुम्हारी किसी बात की प्रतिक्रिया भर है।"

हवा का एक झौंका खिड़की के बाहर से तंबाकू की गंध अंदर ले आया। जले हुए तंबाकू की गंध। वह मुझ तक आई और कहने लगी सिगरेट खुद बना कर पीने लगे हो? 

मैंने अपने बारे में सोचा। उनका खयाल आया जो किसी के साथ होने को कुछ भी बात बना सकते हैं। मैंने कहा "बाबू कुछ नहीं बचेगा। न ये न वो मगर...."

"मगर?"

"मैंने ये लम्हा तुम्हारे साथ जिस तरह जिया है। ये मरने से ठीक पहले जब जीवन के कीमती क्षणों की रील चलती है न, उस समय याद आयेगा" 

क्या शहर था? दिल्ली। शायद दिल्ली 

[अलीजा की उनींदी आंख से गिरा लम्हा]

Popular posts from this blog

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...