Skip to main content

गिरजे का अकेलापन

मंच से उतरे व्यक्ति का अकेलापन, उसके लिए बहुत डरावना होता है। 

व्यक्ति हर क्षण मंच तक पहुंच जाने की लालसा से भरा हुआ अथक प्रयास करता रहता है। जन समूह के समक्ष आसन पर बैठकर कला, साहित्य, सिनेमा, नीति और अन्य सामाजिक विषयों पर अपनी सीमित समझ का ब्योरा देने के समय मानसिक उत्तेजना और अंधे अदृश्य अहंकार की पुष्टि के ठीक बाद वह स्वयं को भीड़ के बीच और बेहद सामान्य व्यक्ति की तरह पाता है। 

ये सचमुच पीड़ादायक है। जलसे का वह हिस्सा खत्म हो चुका है। श्रोता और दर्शक अब किसी और को देख सुन रहे हैं। अभी अभी का नायक पदच्युत हो चुका होता है। प्रसिद्धि और प्रयास काम नहीं कर पाते। वह अकेला रह जाता है। 

इस समय अकेले में अकेलापन या निराशा नहीं आती वरन एक हताशा कठोर प्रहार करती है। इसलिए टूटन बेहिसाब होती है। वह जिस जन को एक स्थाई शोर और चीयर समझा था, वह क्षणिक ठहरा। 

मैं और संजय एक बंद दुकान के पेढ़ी पर बैठे थे। कुछ ऐसी बातें कर रहे थे। 

हमारे पास कुछ कहानियों और कुछ उपन्यासों की बातें थी। इनके बीच संजय ने व्यक्ति के वर्चुअल के स्पेस के बारे में सुंदर बात कही। ये इस समय का सच है। 

मैं और संजय सोशल साइट्स पर न्यूनतम संवाद करते हैं। हमारा मिलना ही संवाद को आगे बढ़ाता है। फिर हम देर तक लिखने पढ़ने के बारे में बात करते हैं। हमें किसी के लिखने से कोई शिकायत नहीं होती। हम बस एक ऐसी किताब पढ़ लेना चाहते हैं, जो हमारी आत्मा को छूकर गुज़रे। बरसों से ऐसा होता नहीं है। हम ख़ुद जो लिख रहे हैं, वह भी स्वांत सुखाय भर है। 

बातों के सिलसिले में अनिमेष मुखर्जी अचानक आए। उन्होंने कुछ तस्वीरें व्हाट्स एप स्टोरीज में शेयर की थी। संयोग से हम दोनों ने देखी। वे बेहद सुंदर तस्वीरें हैं। 

व्यक्ति के अकेलेपन को उसकी रचनात्मकता ही सुंदरता से भर सकती है। 

अनिमेष भरे पूरे हैं, उनमें उतना ही अकेलापन होगा जितना किसी के व्यक्तित्व में होना स्वाभाविक होता है। किंतु उनकी खींची तस्वीरें सुंदर उदाहरण हैं। आप कैसे इस दुनिया को देखते हैं। अपने देखे हुए को कैसे अपनों के बीच शेयर करते हैं। 

मल्टी मीडिया का आदमी अपने व्यक्तित्व को अनेक रंगों से भरता है। वह अपनी रुचि के बहुत सारे काम करता है। सबको सुंदरता से करता है। 

आज दोपहर संजय से फिर मुलाकात होनी थी मगर नहीं हुई। लेकिन मुझे अनिमेष की खींची तस्वीरें मिली हैं। उनका शुक्रिया। तस्वीरें खींचना जितना कलात्मक है, उतना ही कलात्मक है, तस्वीरों को पढ़ना। 

आप जब कभी अकेलेपन से घिरा पाएं तो तस्वीरों को पढ़ें। 

Popular posts from this blog

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...