मैं अपनी एक तस्वीर में काले रंग के चमड़े के लोफर पहले खड़ा हुआ हूं। इसके बाद बरस दर बरस लगभग हर तस्वीर में काले रंग के लोफर हैं।
सहसा पिताजी की याद आती है। वे सीढ़ियों के पास खड़े शू पॉलिश कर रहे हैं। सेंडो बनियान पहने और सूती तौलिया लपेटे हुए। वे जूतों की पॉलिश करने के काम में डूबे हुए हैं। उनका ध्यान केवल एक ही काम में है।
कुछ बरस बाद मैं उनके जूते पोलिश करने लगा। वे जूते देखते, उनको पहनते और चुपचाप चले जाते थे। कभी कभी जाते समय मैं उनके पांवों की ओर देखता था। जूते साफ और सुंदर दिख रहे हैं। ये देख लेने के बाद मैं अपने किसी काम में खो जाता था।
पिताजी अपने बाल छोटे रखते थे। वे लगभग हर महीने कटिंग के लिए जाते। एक भद्र सामाजिक व्यक्ति की तरह उनके बाल संवरे रहते थे। वे नित्य शेव बनाते थे।
वे यदा-कदा कुर्ता पहनते थे. अन्यथा उनकी पोशाक पतलून और कमीज होती थी. वे सलीके से शर्ट को टक इन करते. चमड़े का बेल्ट बांधते और कुर्सी पर शालीनता से बैठते थे.
उनकी व्यवस्थित जीवन शैली में केवल कुछ क्षण अलग होते थे. जब वे मानू या तनु के साथ होते. गोदी में उठाए जाने जितनी लड़कियां, उनके अनुशासन के बाँध में सुराख बना देती. उनकी बरसों से ठहरी हुए हंसी कलकल बहने लगती.
एक सुबह पिताजी नहीं रहे. उस सुबह के बाद बरस पर बरस बीतते गए.
मैंने जाने कब लोफ़र शू पहनने आरंभ किए, मुझे याद नहीं. बूढ़े लोगों के लिए बने समझे जाने वाले जूते मुझे पसंद नहीं थे. मैं स्पोर्ट्स शू में बरसों दफ़्तर जाता रहा. मैंने जींस और शॉर्ट कुर्ते पहने. मैं अपने लम्बे बालों के प्रति ला परवाह था.
आज की सुबह मैंने खाली खाली बाखल देखी. मैं उठकर उसी शीशे तक गया, जिसके सामने खड़े होकर पिताजी शेव बनाया करते थे. मैंने देखा कि मेरी दाढ़ी बढ़ी हुई है. मेरे बाल बे तरतीब हैं.