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Showing posts from June, 2024

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्यों की थी।  उनकी कथाओं के

केंचुए की तरह स्मृति का रेंगना

नग्न-अर्धनग्न तस्वीरों से लोग जा चुके हैं। उनके होने की छाया भर बची है। निष्प्राण, अविचल छाया को देखकर अंधेरा अधिक घना होता प्रतीत होता है। एक नीम सियाह लंबे कमरे में दीवार पर तस्वीरें बिना किसी सिलसिले के चिपकी हुई है।  वैसे एक सलीका होना चहिए था कि बरस दर बरस देह के बदलते रूप के क्रम में उनको टांगा जा सकता था। मगर ऐसा नहीं था। ये तस्वीरें किसी स्मृति की तरह टंगी थी, जैसे कि भूला जा चुका हो, कब कौन जीवन में आया था। सिलसिले से कुछ याद न रहा हो। बस उनके आने और चले जाने की याद बची हो। ऐसे ही तस्वीरें टंगी थी। उन तस्वीरों को किसी कला समीक्षक की तरह देर तक डिटेलिंग के साथ देखना एक दुख था। कि तस्वीरों में उपस्थित देह को तस्वीर लिए जाने के दिनों में और अधबुझी शामों में भी एक भरे उजास में देखा जाना था किंतु वे क्षण द्रुत संयोग के साक्षी होकर विदा हो गए। ये व्यक्ति के अधैर्य को चिढ़ाती हुई तस्वीरें थी। बहुत चुप तस्वीरें जैसे कहती हों। तुम वह सब नहीं जी पाए जो तुमको सौंप दिया गया था। इसलिए इस देह पर केंचुए की तरह तुम्हारी स्मृति को रेंगने की अनुमति नहीं है। उस स्मृति को पोंछ दिया गया है। अपने ए