अर्ध राजनीतिक कविताएँ
मन पर दो लगाम लगानी पड़ती हैं।
अनुराग वत्स के प्रकाशन से जब पहला परिचय हुआ तब वे पंद्रह के आस-पास पुस्तकें प्रकाशित कर चुके थे। हमने राजमा चावल खाए। काग़ज़ी और प्लास्टिक की पत्तलों को समेटा। उनको कूड़ेदान में डालकर एक साथ चल दिए थे।
रुख़ की कुछ पुस्तकों को कोमलता से छुआ। उनके पन्नों का रंग आँख भर देखा। स्याही की सुगंध लेने के लिए क्षणभर पुस्तकों को चेहरे में निकट रखा। फिर अनुराग से कहा। कृपया सब पुस्तकें भिजवा देना।
उस पार्सल में आई पुस्तकों में सबसे पहले व्योमेश शुक्ल को पढ़ना आरम्भ किया था। बनारस पर गद्य। चालीस एक पन्ने पढ़े थे कि पुस्तक घर के चार-पाँच कमरों में रखी अनेक पुस्तकों के बीच कहीं खो गई।
इसके बाद उसकी कई बार स्मृति उभरी किंतु वह जिस प्रकार आई थी, वैसे ही खो भी गई। कुछ मित्रों ने कहा व्योमेश शुक्ल ने अच्छा लिखा है। मैंने कहा मैं शीघ्र इस पुस्तक को पूरा पढ़ लूँगा। अचानक किन्हीं कारणों से व्योमेश यहाँ-वहाँ बोलते हुए दिखे। उनको सुना तो जैसे पढ़ने की उत्सुकता पूर्ण हो गई।
लेखक को एक्टिविस्ट की तरह देख लेने से मन, उसके लिखे की खोज से भटक जाता है। वह जाने कितना सुंदर मन होगा, ये जानने की चाह पर संतोष आ गिरता है।
उसी पार्सल में पंकज चतुर्वेदी का कविता संग्रह सम्मिलित था। आकाश में अर्धचंद्र। सुंदर शीर्षक है। आधा होना अनेक भावों से भरा होता है। आशा, प्रतीक्षा अथवा अफ़सोस। मुझे आशा थी। कहीं से देखा गया अर्धचंद्र आधे मारग के शेष होने की भाँति है।
आपने अर्ध राजनीतिक कविताएँ पढ़ीं होंगीं। वे कविताएँ जो सीधे सत्ता को बदलने का आह्वान नहीं करती वरन् वंचित वर्ग के दुखों, सामाजिक असमानता और लैंगिक पक्षपात जैसे विषयों पर मुखर होती हैं। वे जो सत्ता की मनोवृत्ति को सरल शब्दों में परिभाषित करती हैं। पंकज चतुर्वेदी की कविताएँ ऐसा ही कोमल हस्तक्षेप हैं।
नब्बे का दशक आरम्भ हुआ तब मैं हिंदी साहित्य में स्नातक कर चुका था। मेरा सामना ऐसी ही कविताओं से हुआ किंतु वे पूर्ण राजनीतिक कविताएँ थीं। सब न सही किंतु अधिसंख्य कविताएँ ऐसी ही थी। जिन्हें पढ़कर भारी ऊब होती थी। उनमें से जो तत्व अनुपस्थित था, वह थी कोमलता। यही तत्व आकाश में अर्धचंद्र रच रहा होगा।
मैंने इस संग्रह की भूमिका में व्योमेश शुक्ल का नाम पहले देख लिया किंतु उनकी बात समस्त कविताओं के बाद पढ़ी। एक सुंदर और डरावनी बात हुई। कविताएँ पढ़कर मैं जिस कविता को आपके साथ बाँट लेना चाहता था, उसी को व्योमेश शुक्ल ने भूमिका में चुना था।
ये सुंदर बात है कि एक कविता ने दो मन को बराबर छू लिया था। डरावना ये है कि बाक़ी कविताओं का क्या?
इस कविता संग्रह का एक भाग है, अमरूद का पेड़। ये गद्यात्मक कविताएँ हैं। मैंने इस भाग को बहुत धीमे पढ़ा। ये भाग मेरे मन का रहा। इसमें कुछ स्वतंत्र कविताओं के अतिरिक्त व्यक्तियों के लिए लिखे गए नोट्स कहे जा सकते हैं। मुझे साहित्य की इस परम्परा से कभी प्रेम नहीं हुआ कि किसी व्यक्ति के लिए कविता लिखी जाए। ये इसके लिए, ये उसके लिए बाक़ी जाने किसके लिए।