तुम एक तत्व हो
प्रेम फीलिंग नहीं एक एलिमेंट है।
पहले अनुभूत हो कि सब कितना ख़ाली सा है। इसके बाद लगे कि क्या चाहिए। इसके बाद पाएँ कि दीवारें, छत और खिड़कियां एक क़ैद सी जान पड़ रही हैं। फिर हम घर के अलग कमरों में टहलते हुए ढूंढें कि क्या कम पड़ गया है। फिर हम सोचने लगें कि क्या चाहिए।ठीक उस समय लगता है कि ये नई चीज़ है जिसकी कमी हो गई है। हमको एक टाइट हग चाहिए। ऐसी बाँहें कि देर तक उनमें उलझे खड़े रहें। अपने आप को भूल जाएँ। उससे कहें कि अब सामने बैठ जाओ। तुमको देख लें। उस तरह देखें जिसे निहारना कहा जाता है। आँखों में झांकते जाएँ। फिर सर से पांव तक देखें, जैसे पहली बार देख रहे हों।
कोई हल्का स्वादिष्ट भोजन मंगवाएँ। थोड़ा हाई होने का सोचें मगर डिनर न करते हुए केवल डिनर की टेबल पर बैठे देखकर हाई हो जाएँ।
दुनिया से कहें कि तुम्हारी चिंता न करने के लिए हमें माफ़ कर दो। कल सुबह जागेंगे तब संभव हुआ तो तुमको सोचेंगे। फिर चिपक कर सो जाएँ। जैसे कोई शिशु सोता है। वह है। बस।
इतना समझ कर लगता है कि प्रेम एक अनुभूति नहीं है, ये एक तत्व है। जिसकी हमारे जीवन में कमी हो गई थी। ये तत्व जो हमारे जीवन की वैसी ही आवश्यकता है जैसे मैग्नीशियम। जैसे दूसरे जीवनदायी पदार्थ।
कभी यह तत्व हवा की तरह अदृश्य होकर भी हमें छूता है, और कभी यह जल की तरह बहकर हमें शीतलता देता है।
अनुभूति” और “तत्व” अलग होते हैं। अनुभूति का मतलब है किसी चीज़ को महसूस करना। यह वैयक्तिक होती है। यानी हर व्यक्ति की अनुभूति अलग हो सकती है। जैसे मीठा खाने पर आनंद की अनुभूति। प्रिय व्यक्ति से मिलने पर प्रेम की अनुभूति। ठंडी हवा में सिहरन की अनुभूति।
अनुभूति बदलती रहती है, व्यक्ति-व्यक्ति और समय-समय पर अलग हो सकती है।
तत्व का मतलब है मूलभूत सच्चाई या आधारभूत घटक। यह निरपेक्ष होता है – यानी व्यक्ति की सोच से नहीं बदलता। जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश – ये पाँच तत्व। सत्य को भी “तत्व” कहा जाता है, क्योंकि वह अपरिवर्तनीय है।
“प्रेम एक तत्व है” कहने का अर्थ है कि प्रेम जीवन का आधारभूत, सार्वभौमिक सत्य है। क्योंकि तत्व स्थिर और शाश्वत माने जाते हैं, वे परिस्थितियों के बदलने से नहीं बदलते। प्रेम को “अनुभूति” कहने पर हम उसके महसूस होने की बात कर रहे होते हैं, और प्रेम को “तत्व” कहने पर हम उसके शाश्वत, मूलभूत स्वरूप की बात कर रहे होते हैं।
प्रकाश जिसे छुआ नहीं जा सकता। केवल वह हमें छूता है। उस को तत्व मानने का विचार कई परंपराओं और दर्शनशास्त्र में भी है। भारतीय दर्शन में पाँच तत्व माने गए हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। यहाँ “अग्नि” को केवल आग ही नहीं, बल्कि प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। यानी, प्रकाश अग्नि-तत्व का ही एक रूप है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार, प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है। यह किसी पदार्थ की तरह ठोस “तत्व” नहीं है, लेकिन प्रकृति का मूलभूत घटक है।
तो क्या प्रेम एक अनुभूति है। हमने प्रेम महसूस किया। अगर हमने प्रेम महसूस न किया तो कोई बात नहीं। जबकि वह जो तड़प और बेचैनी होती है, वह केवल अनुभूत करने की नहीं होती। वह होती है एक कमी। एक तत्व की कमी। ऐसा तत्व जिसे छुआ नहीं जा सकता, किसी भौतिक आकार में देखा नहीं जा सकता मगर उसके अभाव में हम बेचैन हो जाते हैं। हमारा मस्तिष्क उधेड़बुन में फँस जाता है।
तो ये आवश्यक है कि गले लग जाएँ, बाँहों में भर लें और सिमट कर निकट सो जाएँ। यही मन उसे तत्व बनाता है। हालाँकि मैं स्वयं अनेक बार इस स्थिति में कोई हल खोजने लगता हूँ। जिसमें किसी दूसरे की उपस्थिति आवश्यक न हो। मेरा सोचना मुझे प्रायः दुविधा में डालता है।
कभी लगता है तुम भी एक तत्व हो, जिसके बिना काफ़ी गड़बड़ें खड़ी हो जाती हैं।