सुबह आठ बजे उठा था . उसके बाद दिन जाने किन ख़यालों में बीता , याद नहीं . आँधियाँ मेरे यहाँ मुहब्बत की राहत की तरह बरसती है . विरह का तापमान कुछ एक डिग्री गिर जाया करता है फिर मैं मुहब्बत की सौगात फाइन डस्ट को पौंछता फिरता हूँ . फाइन डस्ट से कुछ भी अछूता नहीं छूटता जैसे प्रेम अपने लिए जगह बनाता हुआ हर कहीं छा जाता है . घर में अकेला हूँ इसलिए कल दिन भर डस्टिंग और झाडू पौचा करता रहा तो आज थका हुआ था . दिन के अकेले पन में किसी और राहत के बरसने की उम्मीद कम ही थी मगर मिरेकल्स होते हैं , आज मैंने अपने घर के दरवाजे पर एक बेहद खूबसूरत लड़की को देखा , उसने क्या कहा अब याद नहीं मगर उसका चेहरा ... इस समय पूरब में तीस डिग्री ऊंचाई पर खिले हुए चाँद से अधिक सुन्दर था . आज मौसम भी कमबख्त पुरानी दुआओं सा था. तन्हाई और यादें... एक इन्सान हुआ करते थे , जो दिल से कहते थे , अब कोई अवतार नहीं होने वाला कोई मसीहा नहीं आने वाला यानि जागो और अपनी तकदीर खुद लिखो . आज क...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]