खूबसूरत लड़की, तीस डिग्री पर खिला चाँद और कुछ यादें

सुबह आठ बजे उठा था. उसके बाद दिन जाने किन ख़यालों में बीता, याद नहीं. आँधियाँ मेरे यहाँ मुहब्बत की राहत की तरह बरसती है. विरह का तापमान कुछ एक डिग्री गिर जाया करता है फिर मैं मुहब्बत की सौगात फाइन डस्ट को पौंछता फिरता हूँ. फाइन डस्ट से कुछ भी अछूता नहीं छूटता जैसे प्रेम अपने लिए जगह बनाता हुआ हर कहीं छा जाता है .

घर में अकेला हूँ इसलिए कल दिन भर डस्टिंग और झाडू पौचा करता रहा तो आज थका हुआ था. दिन के अकेलेपन में किसी और राहत के बरसने की उम्मीद कम ही थी मगर मिरेकल्स होते हैं, आज मैंने अपने घर के दरवाजे पर एक बेहद खूबसूरत लड़की को देखा, उसने क्या कहा अब याद नहीं मगर उसका चेहरा... इस समय पूरब में तीस डिग्री ऊंचाई पर खिले हुए चाँद से अधिक सुन्दर था.

आज मौसम भी कमबख्त पुरानी दुआओं सा था. तन्हाई और यादें... एक इन्सान हुआ करते थे, जो दिल से कहते थे, अब कोई अवतार नहीं होने वाला कोई मसीहा नहीं आने वाला यानि जागो और अपनी तकदीर खुद लिखो. आज के दिन की पूर्व संध्या पर सितारों में खो गए थे. आह मिर्ज़ा साहब, क्या विकास हुआ है हमारा कि लाइन तोड़ कर जाने वालों को रोक भी नहीं पाते ?


रात नौ बजे से पी रहा हूँ और आबिदा को सुन रहा हूँ.
चाँद अभी स्मृतियों की धूल में बेनूर सा है. हवा में जरूर एक ख़ामोशी है. दूर दिखते हुए टाउन हाल की छत, हाई मास्ट लाईट की रौशनी से चमकती है मगर जाने कितने किरदार बुझ चुके हैं. भीतर एक गहरा सन्नाटा अपना पार्ट करता होगा.

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