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Showing posts from July, 2010

मैं कब ज़िन्दगी को तरतीब में रखना सीखूंगा, एंथनी !

एंथनी हट्टन होता तो इस समय कोई स्पेशल डिश बना रहा होता. उस डिश को खा चुकने से पहले ही उससे एक साल बड़ी कैली शेपर्ड उसे अपनी बाँहों में कस कर मार डालती या फिर शायद वे देर तक आईस हाकी खेलने जैसा नृत्य करते हुए थक कर चूर हो रहे होते. हो सकता है कि कैली कहती "एंथनी तुम फायर मेन क्यों बन गए हो, तुम उस लाल रंग की कठोर टोपी के नीचे से हरदम जागती आँखों से मेरे सिवा सब के बारे में सोचते ही रहते हो." एंथनी के पास सब बातों के जवाब रहे होंगे, पता नहीं उसने कैली को दिये या नहीं. एक लाल रिनोल्ट ने उस बीस साल के नौजवान सायकलिस्ट एंथनी हट्टन को कुचल कर मार दिया था. दुनिया में सड़क हादसों में बहुत लोग मरते हैं किन्तु एंथनी अनमोल था. दो महीने पहले तेरह एप्रिल के दिन सैंतालीस साल के रसेल हट्टन अस्पताल के बाहर खड़े हुए एक टीवी चेनल से बात कर रहे थे. मैं उस हतभागे को सुनता हुआ रोने लगा. एक पिता अपने बेटे की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए खड़ा था. वह अपने बेटे के अंगों का दान किये जाने की कार्रवाही में सहयोग कर रहा था. "वह चाहता था कि अगर मुझे कुछ हो जाये तो मेरे शरीर के सभी उपयोगी अंगों को...

शामें सुस्त है मगर बोझिल नहीं

छः दिन हो गए हैं . शाम सात पचास पर सीढियां चढ़ता हूँ , घूम कर मुड़ता हुआ फिर से चढ़ता हूँ और ऐसे मैं अपनी छत पर पहुंचता हूँ . मेरे हाथ में लेपटोप , एक चिल्ड पानी की बोतल , बच्चों टिफिन जैसे प्लास्टिक के पात्र में स्नेक्स और बीवी के गोल लंच बोक्स जैसी बंद होने वाली कटोरी में सलाद होता है . छत पर एक झोंपड़ी की शेप का कमरा है . जिसमे तीन तरफ से हवा आती है . उसके आगे बरामदा और लेट - बाथ है . इस झोंपड़ी में तीन चारपाइयां और छत पर बिछाने लायक बिस्तर रखे हैं . एक सोफा है और तीस - पैंतीस आंग्ल भाषा में छपी हुई प्राणी शास्त्र की पुस्तकें हैं . एक आले में हंस , पाखी , लहमी , वागर्थ , नया ज्ञानोदय जैसी मासिक त्रेमासिक पत्रिकाएं रखी हैं . जलसा का पहला अंक भी है जिसके कवर पर चिर विवादित , धर्म नाशक , कुंठित और घोर साम्प्रदायिक कहे जाने वाले मेरे प्रिय बूढ़े बाबा का बनाया हुआ चित्र छपा हुआ है . मैं उस पर अधिक ध्यान नहीं देता क्योंकि मेरे यहाँ बरसात सात...

एक आत्ममुग्ध बयान और कुछ भड़वे

सेल फोन पर अभी एक मित्र का संदेश आया है. अंग्रेजी में लिखे गए इस संदेश का भावार्थ कुछ इस तरह से है. अल्कोहल का उपयोग कम करने का टिप. अगर आप कुंवारे हैं तो तो सिर्फ उन दिनों पियें जब आप उदास हों और अगर आप शादीशुदा हैं तो सिर्फ उन दिनों पियें जब आप खुश हों. मैं पढ़ता हूँ और मुस्कुराता हूँ. इसमें शादीशुदा जीवन पर तंज है कि वह अक्सर खुशियाँ कम ही लाता है. क्षण भर बाद मैंने उन दिनों के बारे में सोचा जब मैं शादीशुदा नहीं था और शराब से परिचित था. मेरे परिवार के सभी आनंद उत्सवों में शराब का पिया जाना खास बात रही है. मैं देखता था कि मेरे परिवार के लोग मिल बैठ कर शराब पीते थे. उनके चेहरों पर कोई अवसाद या व्यग्रता नहीं होती थी. घर की औरतें इस काम के प्रति उदासीन ही बनी रहती या फिर इस दौरान वे योजना बना रही होती कि पार्टी के बाद के रात्रिकालीन एकांत में अपने पति को किस तरह से हतोत्साहित करना है. ये कोशिशें अक्सर कामयाब नहीं हो पाती थी क्योंकि दस बीस लोगों में से कोई एक लड़खड़ा जाता या फिर शराब के नशे में नाचने लगता या फिर अपनी माँ और बुआ को दुनिया की सबसे अच्छी औरत बताने के प्रयासों ...

कुत्ते, तुम रोते क्यों हो यार ?

साल भर से मेरी स्थिति पंडित श्रीनारायण जैसी हो गयी है. रांगेय राघव की कहानी रोने का मोल में पंडित श्रीनारायण का किरदार आते ही कहता है "धर्म नहीं रहा वरना दिनदहाड़े कहीं भला सड़क पर कुत्ता रोने दिया जाता है" बड़े लडके गोविन्द ने कहा "चाचा इसकी तो गरदन काट देनी चाहिए" छोटे मनोहर ने कुछ समझा कर कहा "रो लेने दो उसे, उसी ने उस दिन मेहरा के घर से उतरते चोर को पकड़वाया था." माँ ने टोक कर शीघ्रता से कहा "नहीं रे, यह बुरा सौं है. यम दर्शन होते हैं. क्यों मोहल्ले में मारे हैं सबको" श्री नारायण गरज पड़े "मनोहर, अबकी कहियो " मनोहर उठ कर गंभीर हो गया. अँधेरा स्याह पड़ने लगा था. गोविन्द ने झटके से दरवाजा भेड़ दिया. अन्धकार में से कुत्ते ने सर घुमा कर इधर उधर देखा. दरवाजा बंद था. क्षण भर में वह सड़क पर आया और जोर जोर से रो पड़ा और द्वार खुलने से पहले ही अँधेरे में विलीन हो गया. मेरे पड़ौसी राणा राम ने अपनी उम्र के अंतिम दिन विक्षिप्तता में बिताये. मैं उनको सुनता और उत्तर दिया करता था इसलिए सदा मुस्कुरा कर मिलते थे. एक सुबह वे घूमने निकले तो...

भाई, मैं बहुत प्यार करता हूँ तुमसे अगर मर जाऊं तो ये याद रहे.

बीवी खाना दोगी ? लगता है जैसे उससे पूछ रहा हूँ . अभी वह स्कूल से नहीं आई है मगर भूख तेज लगी है . आँखें खोलता हूँ और सामने टी टेबल पर रखे लेपटोप को देखता हूँ दिन के बारह बजे हैं . नींद का झोंका फिर से आया और भूख जाग उठी . ड्राईंग रूम के सोफे पर लेटा हुआ मैं अपने मस्तक पर उभर आये पसीने को पोंछने के लिए हाथ बढाता हूँ ताजा हरा धनिये की खुशबू आती है . उस खुशबू में विम बार की गंध भी मिली हुई है . याद आता है कि मैं खुद अभी आलू और ग्वार फली की सब्जी बनाने के बाद बर्तन धोकर सींक साफ़ कर के आया हूँ . बच्चे स्कूल गए हुए , उनके प्रोफ़ेसर चाचा कॉलेज और मेरी माँ गाँव यानि घर में अकेला हूँ . सुबह से उनींदा हूँ कि कल रात बारह बज कर पचास मिनट पर फोन आया . आधी नींद में उसका नाम देख कर भी यकीन नहीं हुआ कि उसने मुझे काल किया है . पिछले दस सालों में हमारी कभी बात नहीं हुई , तो इतनी रात गए ? खैर हाँ .. हाँ और हाँ के बाद उसे यकीन हुआ ...

ईश्वर, दोस्तों को मुहोब्बत से पहले यकीन दे या पीना सिखा दे

कल शाम से सोच रहा हूँ कि कुछ दिनों के लिए शराब पीना छोड़ दूं और ऐसा आदमी बन कर देखूं जो प्रेम से नहीं हिसाब से दुनिया में जीये . कल दोपहर में अपना लेपटोप खोला . ई मेल नहीं थे . कुछ दोस्तों के पन्ने देखे , वहां भी उदासी थी . एक मित्र से चेट करने लगा , इसी चेट के दौरान कल दोपहर तीन बज कर चालीस मिनट पर फोन आया . कहाँ हो ...? ऑफिस में हूँ ... मैं आपके शहर में हूँ , मेरे पास आधा घंटा है और मैं ऑफिस आ रही हूँ . मैंने कहा आ जाओ . टेबल पर रखी काम्पेक्ट डिस्क को हटाया . कुछ किताबों को अपने लेपटोप केस में डाला . पांव जूतों में डाल कर तस्मे कस लिए . बाहें ऊपर से नीचे करके दो दो बटन बंद किये . आराम कुर्सी से उठ कर ऑफिस चेयर पर बैठ गया . कुछ देर बाद उठा और रिसेप्शन के पास आकर खड़ा हो गया . बाहर नीले आसमान से आग बरस रही थी . इक्का दुक्का बादल किसी उधेड़बुन में इधर उधर हो रहे थे . नीम के नीचे बैठा द्वारपाल किसी आगुन्तुक से बतिया रहा था...